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ज॒घने॒ चोद॑ एषां॒ वि स॒क्थानि॒ नरो॑ यमुः। पु॒त्र॒कृ॒थे न जन॑यः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jaghane coda eṣāṁ vi sakthāni naro yamuḥ | putrakṛthe na janayaḥ ||

पद पाठ

ज॒घने॑। चोदः॑। ए॒षा॒म्। वि। स॒क्थानि॑। नरः॑। य॒मुः॒। पु॒त्र॒ऽकृ॒थे। न। जन॑यः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरः) नायक जनो ! (पुत्रकृथे) पुत्र करने में (जनयः) माता-पिता (न) जैसे वैसे (एषाम्) इनके (जघने) कटि के नीचे के भाग के अवयवों को जो (चोदः) प्रेरणा करनेवाला है और जो (सक्थानि) घुटनों को (वि, यमुः) नियम में रक्खें, उनका आप लोग सत्कार करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे उत्पन्न करनेवाले माता-पिता सुन्दर नियम से सन्तानोत्पत्ति करके इनको उत्तम प्रकार नियमयुक्त करके उत्तम प्रकार शिक्षित करें, वैसे सब करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे नरः ! पुत्रकृथे जनयो नैषां जघने यश्चोदोऽस्ति ये सक्थानि वि यमुस्तान् यूयं सत्कुरुत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (जघने) कट्यधोभागावयवे (चोदः) प्रेरकः (एषाम्) (वि) (सक्थानि) सक्थीनि (नरः) नेतारः (यमुः) नियच्छेयुः (पुत्रकृथे) पुत्रकरणे (न) इव (जनयः) मातापितरः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा जनका मातापितरः सुनियमेन सन्तानोत्पत्तिं कृत्वैतान् सुनियम्य सुशिक्षितान् कुर्युस्तथा सर्वे कुर्वन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे माता-पिता नियमपूर्वक संतानोत्पत्ती करतात. त्यांच्यावर नियंत्रण ठेवतात व सुशिक्षित करतात तसे सर्वांनी वागावे. ॥ ३ ॥