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क्व१॒॑ वोऽश्वाः॒ क्वा॒३॒॑भीश॑वः क॒थं शे॑क क॒था य॑य। पृ॒ष्ठे सदो॑ न॒सोर्यमः॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kva vo śvāḥ kvābhīśavaḥ kathaṁ śeka kathā yaya | pṛṣṭhe sado nasor yamaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्व॑। वः॒। अश्वाः॑। क्व॑। अ॒भीश॑वः। क॒थम्। शे॒क॒। क॒था। य॒य॒। पृ॒ष्ठे। सदः॑। न॒सोः। यमः॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (वः) आप लोगों के (क्व) कहाँ (अश्वाः) शीघ्र चलनेवाले घोड़े और (क्व) कहाँ (अभीशवः) अङ्गुलियाँ हैं, उनको आप लोग (कथम्) किस प्रकार (शेक) शीघ्र पहुँचनेवाले हूजिये और (कथा) किस प्रकार से (यय) जाइये और जैसे (नसोः) नासिकाओं के (पृष्ठे) पीछे के भाग में (सदः) छेदन करने योग्य वस्तु का (यमः) नियन्ता है, वैसे आप लोग हूजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जब कोई विद्वानों को पूछे तब वे उत्तर दें और पक्षपात को छोड़कर न्यायाधीशों के सदृश होवें, तब सम्पूर्ण बोध को प्राप्त होवें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! वः क्वाश्वाः क्वाभीशवः सन्ति तान् यूयं कथं शेक कथा यय। यथा नसोः पृष्ठे सदो यमोऽस्ति तथा यूयं भवत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्व) कस्मिन् (वः) युष्माकम् (अश्वाः) आशुगामिनः (क्व) (अभीशवः) अङ्गुलय इव। अभीशव इत्यङ्गुलिनामसु पठितम्। (निघं०२.५) (कथम्) (शेक) सद्योगामिनो भवत (कथा) केन प्रकारेण (यय) गच्छत (पृष्ठे) पश्चाद्भागे (सदः) छेद्यं वस्तु (नसोः) नासिकयोः (यमः) नियन्ता ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यदा कश्चित् विदुषः पृच्छेत्तदा त उत्तरं दद्युः पक्षपातञ्च विहाय न्यायाधीशा इव भवेयुस्तदा समग्रं बोधमाप्नुयुः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा विद्वानांना प्रश्न विचारला जातो तेव्हा त्यांनी उत्तर द्यावे. पक्षपात न करता न्यायाधीशाप्रमाणे वागल्यास संपूर्ण बोध होतो. ॥ २ ॥