ए॒तं मे॒ स्तोम॑मूर्म्ये दा॒र्भ्याय॒ परा॑ वह। गिरो॑ देवि र॒थीरि॑व ॥१७॥
etam me stomam ūrmye dārbhyāya parā vaha | giro devi rathīr iva ||
ए॒तम्। मे॒। स्तोम॑म्। ऊ॒र्म्ये॒। दा॒र्भ्याय॑। परा॑। व॒ह॒। गिरः॑। दे॒वि॒। र॒थीःऽइ॑व ॥१७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे देवि ! ऊर्म्ये रात्रिवद्वर्त्तमाने त्वं म एतं स्तोमं शृणु दार्भ्याय वर्त्तमानं परा वह रथीरिव गिर आवह ॥१७॥