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ते नो॒ वसू॑नि॒ काम्या॑ पुरुश्च॒न्द्रा रि॑शादसः। आ य॑ज्ञियासो ववृत्तन ॥१६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te no vasūni kāmyā puruścandrā riśādasaḥ | ā yajñiyāso vavṛttana ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। नः॒। वसू॑नि। काम्या॑। पु॒रु॒ऽच॒न्द्राः। रि॒शा॒द॒सः॒। आ। य॒ज्ञि॒या॒सः॒। व॒वृ॒त्त॒न॒ ॥१६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:16 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:29» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:16


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (यज्ञियासः) यज्ञ के करने (रिशादसः) और हिंसकों के मारनेवाले (नः) हम लोगों के (पुरुश्चन्द्राः) बहुत सुवर्ण और (काम्या) सुन्दर (वसूनि) धनों को (आ, ववृत्तन) प्राप्त होते हैं (ते) वे विद्वान् हम लोगों के कल्याणकारी होते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! वे ही इस संसार में परोपकार के लिये वर्त्तमान हैं, जो न्याय से द्रव्य का संग्रह करते हैं ॥१६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

ये यज्ञियासो रिशादसो नः पुरुश्चन्द्राः काम्या वसून्याऽऽववृत्तन तेऽस्माकं कल्याणकारिणो भवन्ति ॥१६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) विद्वांसः (नः) अस्माकम् (वसूनि) धनानि (काम्या) कमनीयानि (पुरुश्चन्द्राः) बहुसुवर्णानि (रिशादसः) हिंसकहिंसकाः (आ) (यज्ञियासः) यज्ञसम्पादकाः (ववृत्तन) वर्त्तन्ते ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यास्त एवात्र जगति परोपकाराय वर्त्तन्ते ये न्यायेन द्रव्योपार्जनमाचरन्ति ॥१६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जे न्यायाने धन संग्रहित करतात तेच या जगात परोपकारी असतात. ॥ १६ ॥