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को वे॑द नू॒नमे॑षां॒ यत्रा॒ मद॑न्ति॒ धूत॑यः। ऋ॒तजा॑ता अरे॒पसः॑ ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ko veda nūnam eṣāṁ yatrā madanti dhūtayaḥ | ṛtajātā arepasaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। वे॒द॒। नू॒नम्। ए॒षा॒म्। यत्र॑। मद॑न्ति। धूत॑यः। ऋ॒तऽजा॑ताः। अ॒रे॒पसः॑ ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उपदेशार्थ विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (यत्रा) जहाँ (ऋतजाताः) सत्य में उत्पन्न होनेवाले (अरेपसः) अपराध से रहित (धूतयः) पाप को कम्पानेवाले (मदन्ति) प्रसन्न होते हैं वहाँ (एषाम्) इन वायु आदि के स्वरूप को (नूनम्) निश्चित (कः) कौन (वेद) जानता है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! अपराध-अनपराध तथा सत्य और असत्य को कौन जानता है, यह हम पूछते हैं। जो प्रमाद से रहित और परमेश्वरभक्त होते हैं ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरुपदेशार्थविषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यत्रर्तजाता अरेपसो धूतयो मदन्ति तत्रैषां स्वरूपं नूनं को वेद ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (वेद) जानाति (नूनम्) निश्चितम् (एषाम्) वाय्वादीनाम् (यत्रा) (मदन्ति) हर्षन्ति (धूतयः) ये पापं धूनयन्ति ते (ऋतजाताः) य ऋते जायन्ते ते (अरेपसः) अनपराधिनः ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! अपराधानपराधौ सत्यासत्ये च को वेत्तीति पृच्छामः। ये प्रमादविरहाः परमेश्वरभक्ता भवन्तीति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! कोण अपराध-अनपराध तसेच सत्य व असत्य जाणतो? हे आम्ही विचारतो. तर (त्याचे उत्तर असे की) जे प्रमादरहित असून परमेश्वर भक्त असतात तेच हे जाणतात. ॥ १४ ॥