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यो मे॑ धेनू॒नां श॒तं वैद॑दश्वि॒र्यथा॒ दद॑त्। त॒र॒न्तइ॑व मं॒हना॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo me dhenūnāṁ śataṁ vaidadaśvir yathā dadat | taranta iva maṁhanā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। मे॒। धे॒नू॒नाम्। श॒तम्। वैद॑त्ऽअश्विः। यथा॑। दद॑त्। त॒र॒न्तःऽइ॑व। मं॒हना॑ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:61» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:27» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (वैददश्विः) घोड़ों के ज्ञाता का पुत्र (मे) मेरी (धेनूनाम्) गौओं के (शतम्) सैकड़े को (ददत्) देता है (यथा) जैसे (मंहना) बड़ी नौका से (तरन्तइव) तैरते हुओं के समान दुःख के पार पहुँचाता है, वही स्वामी होने के योग्य होता है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सैकड़ों वा हजारों का देनेवाला होता है और दुग्ध देनेवाली गौओं की रक्षा करता है, वह नौका से नदी वा समुद्र को तरता है, वैसे ही बुद्धिमान् स्त्री और पुरुष दुःखरूपी सागर को धर्म के आचरण से तरते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

यो वैददश्विर्मे धेनूनां शतं ददद्यथा मंहना तरन्तइव दुःखपारं नयति स एव स्वामी भवितुमर्हति ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (मे) मम (धेनूनाम्) गवाम् (शतम्) (वैददश्विः) योऽश्वान् विन्दति स विददश्वस्तस्यापत्यं वैददश्विः (यथा) (ददत्) ददाति (तरन्तइव) तरन्त इव (मंहना) महत्या नौकया ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यो मनुष्यः शतदः सहस्रदो भवति दोग्ध्रीणां गवां रक्षणं करोति स नौकया नदीं समुद्रं वा तरति तथैव मेधाविनौ स्त्रीपुरुषौ दुःखसागरं धर्म्माचरणेन तरतः ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो माणूस शेकडो किंवा हजारोंचा दाता असतो, दुभत्या गाईंचे रक्षण करतो, तो नौकेने नदी किंवा समुद्र तरून जातो. तसेच बुद्धिमान स्त्री-पुरुष दुःखरूपी सागर धर्माच्या आचरणाने तरून जातात. ॥ १० ॥