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व॒राइ॒वेद्रै॑व॒तासो॒ हिर॑ण्यैर॒भि स्व॒धाभि॑स्त॒न्वः॑ पिपिश्रे। श्रि॒ये श्रेयां॑सस्त॒वसो॒ रथे॑षु स॒त्रा महां॑सि चक्रिरे त॒नूषु॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

varā ived raivatāso hiraṇyair abhi svadhābhis tanvaḥ pipiśre | śriye śreyāṁsas tavaso ratheṣu satrā mahāṁsi cakrire tanūṣu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒राःऽइ॑व। इत्। रै॒व॒तासः। हिर॑ण्यैः। अ॒भि। स्व॒धाभिः॑। त॒न्वः॑। पि॒पि॒श्रे॒। श्रि॒ये। श्रेयां॑सः। त॒वसः॑। रथे॑षु। स॒त्रा। महां॑सि। च॒क्रि॒रे॒। त॒नूषु॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:60» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (श्रेयांसः) अत्यन्त कल्याण की इच्छा करते हुए (तवसः) बलवान् गतिवाले (रैवतासः) पशुओं में हुए मनुष्य (वराइव) श्रेष्ठों के तुल्य (इत्) ही (हिरण्यैः) सुवर्ण तेज आदिकों से और (स्वधाभिः) अन्न आदिकों से (तन्वः) शरीरों को (पिपिश्रे) स्थूल अवयववाले करते हैं, और (श्रिये) लक्ष्मी के लिये (रथेषु) वाहनों और (तनूषु) शरीरों में (सत्रा) सत्य (महांसि) बड़े काम (अभि, चक्रिरे) करते हैं, वे भाग्यशाली होते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य के शरीर का आश्रय करके लक्ष्मी की इच्छा करते हैं, वे दारिद्र्य का नाश करते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

ये श्रेयाँसस्तवसो रैवतासो मनुष्या वराइवेद्धिरण्यैः स्वधाभिस्तन्वः पिपिश्रे। श्रिये रथेषु तनूषु सत्रा महांस्यभि चक्रिरे ते भाग्यशालिनो भवन्ति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वराइव) वरैस्तुल्याः (इत्) एव (रैवतासः) रेवतीषु पशुषु भवाः (हिरण्यैः) सुवर्णैस्तेज आदिभिः (अभि) (स्वधाभिः) अन्नादिभिः (तन्वः) शरीराणि (पिपिश्रे) स्थूलावयवानि कुर्वन्ति (श्रिये) लक्ष्म्यै (श्रेयांसः) अतिशयेन श्रेय इच्छन्तः (तवसः) बलिष्ठा गतिमन्तः (रथेषु) यानेषु (सत्रा) सत्यानि (महांसि) (चक्रिरे) कुर्वन्ति (तनूषु) शरीरेषु ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्यशरीरमाश्रित्य श्रियमन्विच्छन्ति ते दारिद्र्यं घ्नन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे शरीराच्या साह्याने समृद्धीची इच्छा करतात. ती दारिद्र्याचा नाश करतात. ॥ ४ ॥