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आ ये त॒स्थुः पृष॑तीषु श्रु॒तासु॑ सु॒खेषु॑ रु॒द्रा म॒रुतो॒ रथे॑षु। वना॑ चिदुग्रा जिहते॒ नि वो॑ भि॒या पृ॑थि॒वी चि॑द्रेजते॒ पर्व॑तश्चित् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā ye tasthuḥ pṛṣatīṣu śrutāsu sukheṣu rudrā maruto ratheṣu | vanā cid ugrā jihate ni vo bhiyā pṛthivī cid rejate parvataś cit ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। ये। त॒स्थुः। पृष॑तीषु। श्रु॒तासु॑। सु॒ऽखेषु॑। रु॒द्राः। म॒रुतः॑। रथे॑षु। वना॑। चि॒त्। उ॒ग्राः॒। जि॒ह॒ते॒। नि। वः॒। भि॒या। पृ॒थि॒वी। चि॒त्। रे॒ज॒ते॒। पर्व॑तः। चि॒त् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:60» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (रुद्राः) प्राण आदि और (मरुतः) मनुष्य (श्रुतासु) विद्याओं में (पृषतीषु) सेचन करनेवालियों में (सुखेषु) सुखों में और (रथेषु) विमानादि वाहनों में (आ, तस्थुः) स्थित होवें (चित्) और (वना) किरण (उग्राः) तीव्र स्वभाववालों के सदृश (नि, जिहते) निरन्तर जाते हैं और (वः) आप लोगों के (भिया) भय से (पृथिवी) भूमि (चित्) भी (रेजते) कम्पित होती है (पर्वतः) मेघ के (चित्) समान पदार्थ कम्पित होता है, उनका हम लोग निरन्तर सत्कार करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! उत्तम विद्याओं और उत्तम वाहनों पर स्थित होकर शीघ्र जाने के लिये समर्थ हूजिये ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

ये रुद्रा मरुतः श्रुतासु पृषतीषु सुखेषु रथेष्वा तस्थुश्चिदपि वनोग्रा इव नि जिहते। वो भिया पृथिवी चिद्रेजते पर्वतश्चिदिव रेजते तान् वयं सततं सत्कुर्याम ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (ये) (तस्थुः) (पृषतीषु) सेचनकर्त्रीषु (श्रुतासु) विद्यासु (सुखेषु) (रुद्राः) प्राणादयः (मरुतः) मनुष्याः (रथेषु) विमानादिषु यानेषु (वना) किरणाः (चित्) अपि (उग्राः) तीव्रस्वभावाः (जिहते) गच्छन्ति (नि) नितराम् (वः) युष्माकम् (भिया) भयेन (पृथिवी) भूमिः (चित्) (रेजते) कम्पते (पर्वतः) मेघः (चित्) इव ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! उत्तमासु विद्यासूत्तमेषु यानेषु च स्थित्वा शीघ्रगमनाय समर्था भवत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! उत्तम विद्या प्राप्त करून व उत्तम वाहनात बसून तात्काळ कुठेही पोचण्यास समर्थ व्हा. ॥ २ ॥