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ईळे॑ अ॒ग्निं स्वव॑सं॒ नमो॑भिरि॒ह प्र॑स॒त्तो वि च॑यत्कृ॒तं नः॑। रथै॑रिव॒ प्र भ॑रे वाज॒यद्भिः॑ प्रदक्षि॒णिन्म॒रुतां॒ स्तोम॑मृध्याम् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īḻe agniṁ svavasaṁ namobhir iha prasatto vi cayat kṛtaṁ naḥ | rathair iva pra bhare vājayadbhiḥ pradakṣiṇin marutāṁ stomam ṛdhyām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ईळे॑। अ॒ग्निम्। सु॒ऽअव॑सम्। नमः॑ऽभिः। इ॒ह। प्र॒ऽस॒त्तः। वि। च॒य॒त्। कृ॒तम्। नः॒। रथैः॑ऽइव। प्र। भ॒रे॒। वा॒ज॒यत्ऽभिः॑। प्र॒ऽद॒क्षि॒णित्। म॒रुता॑म्। स्तोम॑म्। ऋ॒ध्या॒म् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:60» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (प्रसत्तः) प्रसन्न (इह) इस संसार में मैं (नमोभिः) सत्कारों से हूँ वैसे सत्कारों से (स्ववसम्) उत्तम रक्षण जिससे उस (अग्निम्) बिजुली की (ईळे) अधिक इच्छा करता और (कृतम्) किये काम को (वि, चयत्) विवेक करता हूँ और जो (मरुताम्) मनुष्यों के समूह (वाजयद्भिः) वेगवाले (रथैरिव) वाहनों के सदृश पदार्थों से (नः) हम लोगों को पहुँचाते हैं उनको मैं (प्र, भरे) धारण करता हूँ और (प्रदक्षिणित्) प्रदक्षिणा को प्राप्त करानेवाला मैं मनुष्यों की (स्तोमम्) प्रशंसा को (ऋध्याम्) बढ़ाऊँ ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । विद्वान् जन को चाहिये कि विद्वानों के सङ्ग से अग्नि आदि विद्या को प्रकट करा के प्रसन्नता सम्पादित करे ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्यैः किं साधनीयमित्याह ॥

अन्वय:

यथा प्रसत्त इहाहं नमोभिरस्मि तथा नमोभिः स्ववसमग्निमीळे कृतं वि चयत्। ये मरुतां गणा वाजयद्भी रथैरिव नोऽस्मान् वहन्ति तानहं प्र भरे प्रदक्षिणिदहं मरुतां स्तोममृध्याम् ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ईळे) अधीच्छामि (अग्निम्) विद्युतम् (स्ववसम्) सुष्ठ्ववो रक्षणं यस्मात्तम् (नमोभिः) सत्कारैः (इह) अस्मिन् संसारे (प्रसत्तः) प्रसन्नः (वि) (चयत्) विचिनोमि (कृतम्) (नः) अस्मान् (रथैरिव) (प्र) (भरे) (वाजयद्भिः) वेगवद्भिः (प्रदक्षिणित्) यः प्रदक्षिणां नयति (मरुताम्) मनुष्याणाम् (स्तोमम्) श्लाघाम् (ऋध्याम्) वर्धयेयम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । विदुषा विदुषां सङ्गेनाग्न्यादिविद्यामाविर्भाव्य प्रसन्नता सम्पादनीया ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात वायू, अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. विद्वान लोकांनी विद्वानांच्या संगतीने अग्नी इत्यादी विद्या प्रकट करून प्रसन्नतेने राहावे. ॥ १ ॥