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उ॒भे सु॑श्चन्द्र स॒र्पिषो॒ दर्वी॑ श्रीणीष आ॒सनि॑। उ॒तो न॒ उत्पु॑पूर्या उ॒क्थेषु॑ शवसस्पत॒ इषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ubhe suścandra sarpiṣo darvī śrīṇīṣa āsani | uto na ut pupūryā uktheṣu śavasas pata iṣaṁ stotṛbhya ā bhara ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒भे इति॑। सु॒ऽच॒न्द्र॒। स॒र्पिषः॑। दर्वी॑ इति॑। श्री॒णी॒षे॒। आ॒सनि॑। उ॒तो इति॑। नः॒। उत्। पु॒पू॒र्याः॒। उ॒क्थेषु॑। श॒व॒सः॒। प॒ते॒। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:6» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुश्चन्द्र) उत्तम सुवर्ण आदि ऐश्वर्य्य से युक्त (शवसः, पते) सेना के स्वामी ! जो आप (उभे) दोनों (दर्वी) पाक करने के साधानों अर्थात् चम्मचों को इकट्ठे करके (आसनि) मुख में अर्थात् अग्निमुख में (सर्पिषः) घृत आदि का (श्रीणीषे) पाक करते हो (उतो) और उससे (नः) हम लोगों को (उत्, पुपूर्याः) उत्तमता से शोभित करें वा पालें वह आप (उक्थेषु) प्रशंसित धर्म्मसम्बन्धी कर्म्मों में (स्तोतृभ्यः) पढ़ाने और पढ़नेवालों के लिये (इषम्) अन्न का (आ, भर) धारण करें ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो राजा सेना के भोजन के उत्तम प्रबन्ध को आरोग्य के लिये वैद्यों को रखता है, वही प्रशंसित होकर राज्य बढ़ाता है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सुश्चन्द्र शवसस्पते ! यत्स्त्वमुभे दर्वी घटयित्वाऽऽसनि सर्पिषः श्रीणीष उतो तेन नोऽस्मानुत्पुपूर्याः स त्वमुक्थेषु स्तोतृभ्य इषमा भर ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उभे) (सुश्चन्द्र) सुष्ठुसुवर्णाद्यैश्वर्य्य (सर्पिषः) घृतादेः (दर्वी) दृणाति याभ्यां ते पाकसाधने (श्रीणीषे) पचसि (आसनि) आस्ये (उतो) (नः) अस्मान् (उत्) (पुपूर्याः) अलङ्कुर्याः पालयेः (उक्थेषु) प्रशंसितेषु धर्म्येषु कर्मसु (शवसः, पते) बलस्य सैन्यस्य स्वामिन् (इषम्) (स्तोतृभ्यः) अध्यापकाध्येतृभ्यः (आ) (भर) ॥९॥
भावार्थभाषाः - यो राजा सैन्यस्य भोजनप्रबन्धमुत्तममारोग्याय वैद्यान् रक्षति स एव प्रशंसितो भूत्वा राज्यं वर्धयति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा सेनेची भोजन व्यवस्था व उत्तम आरोग्य यासाठी वैद्य बाळगतो, तोच प्रशंसित होऊन राज्य वाढवितो. ॥ ९ ॥