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प्रो त्ये अ॒ग्नयो॒ऽग्निषु॒ विश्वं॑ पुष्यन्ति॒ वार्य॑म्। ते हि॑न्विरे॒ त इ॑न्विरे॒ त इ॑षण्यन्त्यानु॒षगिषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pro tye agnayo gniṣu viśvam puṣyanti vāryam | te hinvire ta invire ta iṣaṇyanty ānuṣag iṣaṁ stotṛbhya ā bhara ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रो इति॑। त्ये। अ॒ग्नयः॑। अ॒ग्निषु॑। विश्व॑म्। पु॒ष्य॒न्ति॒। वार्य॑म्। ते। हि॒न्वि॒रे॒। ते। इ॒न्वि॒रे॒। ते। इ॒ष॒ण्य॒न्ति॒। आ॒नु॒षक्। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। आ। भ॒र॒ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:6» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अग्नयः) अग्नि (अग्निषु) अग्नि आदि पदार्थों में वर्त्तमान हैं (त्ये) वे (वार्यम्) स्वीकार करने योग्य (विश्वम्) सब जगत् को (प्रो, पुष्यन्ति) पुष्ट करते हैं (ते) वे स्वीकार करने योग्य पदार्थ की (हिन्विरे) वृद्धि कराते हैं (ते) वे (इन्विरे) व्याप्त होते हैं और (ते) वे कार्य्यों के सिद्ध करनेवाले हैं, उनको जान के जो (आनुषक्) अनुकूलता से (इषण्यन्ति) अन्न आदि की इच्छा करते हैं, उनकी विद्या से (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों के लिये आप (इषम्) विज्ञान को (आ, भर) धारण कीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो पृथिवी आदि में अग्नि आदि पदार्थ हैं, उनको जान के फिर ईश्वर को जानो ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! येऽग्नयोऽग्निषु वर्त्तन्ते त्ये वार्यं विश्वं प्रो पुष्यन्ति ते वार्यं हिन्विरे त इन्विरे ते साधकाः सन्ति तान् विदित्वा य आनुषगिषण्यन्ति तद्विद्यया स्तोतृभ्यस्त्वमिषमा भर ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रो) (त्ये) ते (अग्नयः) पावकाः (अग्निषु) अग्न्यादिपदार्थेषु (विश्वम्) सर्वं जगत् (पुष्यन्ति) (वार्यम्) वरणीयम् (ते) (हिन्विरे) वर्द्धयन्ति (ते) (इन्विरे) व्याप्नुवन्ति (ते) (इषण्यन्ति) अन्नादिकमिच्छन्ति (आनुषक्) आनुकूल्ये (इषम्) विज्ञानम् (स्तोतृभ्यः) (आ) (भर) ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! ये पृथिव्यादिष्वग्न्यादयः पदार्थाः सन्ति तान् विदित्वा पुनरीश्वरं विजानीत ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! पृथ्वी इत्यादी पदार्थातील अग्नी इत्यादी पदार्थांना जाणून नंतर ईश्वराला जाणा ॥ ६ ॥