वांछित मन्त्र चुनें

वयो॒ न ये श्रेणीः॑ प॒प्तुरोज॒सान्ता॑न्दि॒वो बृ॑ह॒तः सानु॑न॒स्परि॑। अश्वा॑स एषामु॒भये॒ यथा॑ वि॒दुः प्र पर्व॑तस्य नभ॒नूँर॑चुच्यवुः ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayo na ye śreṇīḥ paptur ojasāntān divo bṛhataḥ sānunas pari | aśvāsa eṣām ubhaye yathā viduḥ pra parvatasya nabhanūm̐r acucyavuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वयः॑। न। ये। श्रेणीः॑। प॒प्तुः॒। ओज॑सा। अन्ता॑न्। दि॒वः। बृ॒ह॒तः। सानु॑नः। परि॑। अश्वा॑सः। ए॒षा॒म्। उ॒भये॑। यथा॑। वि॒दुः। प्र। पर्व॑तस्य। न॒भ॒नून्। अ॒चु॒च्य॒वुः॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:59» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:7 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर शिक्षाविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (ओजसा) पराक्रम से (वयः) पक्षियों के (न) सदृश (श्रेणीः) पङ्क्तियों को (पप्तुः) प्राप्त होते और (बृहतः) बड़े (सानुनः) शिखर के समान (अन्तान्) समीप में वर्त्तमान (दिवः) व्यवहार करनेवालों को (परि) सब ओर से प्राप्त होते हैं (एषाम्) इनके जो (उभये) दो प्रकार के (अश्वासः) शीघ्र चलनेवाले पदार्थ हैं, उनको (यथा) जिस प्रकार से (विदुः) जानते हैं और (पर्वतस्य) मेघ के (नभनून्) समूहों को (प्र, अचुच्यवुः) अत्यन्त वर्षावें, वे संसार के आधार होते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे पक्षी पङ्क्तिबद्ध हुए शीघ्र जाते हैं, वैसे ही उत्तम प्रकार शिक्षायुक्त नौकर और घोड़े आदि वाहन तीनों मार्गों में शीघ्र जाते हैं ॥७॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः शिक्षाविषयमाह ॥

अन्वय:

य ओजसा वयो न श्रेणीः पप्तुर्बृहतः सानुनोऽन्तान् दिवः परि पप्तुरेषां य उभयेऽश्वासः सन्ति तान् यथा विदुः पर्वतस्य नभनून् प्राचुच्यवुस्ते जगदाधाराः सन्ति ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वयः) पक्षिणः (न) इव (ये) (श्रेणीः) पङ्क्तीः (पप्तुः) प्राप्नुवन्ति (ओजसा) पराक्रमेण (अन्तान्) समीपस्थान् (दिवः) व्यवहर्तॄन् (बृहतः) (सानुनः) शिखरस्येव (परि) (अश्वासः) सद्योगामिनः (एषाम्) (उभये) (यथा) (विदुः) जानन्ति (प्र) (पर्वतस्य) मेघस्य (नभनून्) धनान् (अचुच्यवुः) च्यावयेयुः ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा पक्षिणः श्रेणीभूताः सद्यो गच्छन्ति तथैव सुशिक्षिता भृत्या अश्वादयो यानानि त्रिषु मार्गेषु सद्यो गच्छन्ति ॥७॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे पक्षी ओळीने तात्काळ उडतात. तसेच उत्तम प्रकारे शिक्षित सेवक व घोडे इत्यादी वाहने ताबडतोब तीन मार्गांनी जातात. ॥ ७ ॥