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अ॒राइ॒वेदच॑रमा॒ अहे॑व॒ प्रप्र॑ जायन्ते॒ अक॑वा॒ महो॑भिः। पृश्नेः॑ पु॒त्रा उ॑प॒मासो॒ रभि॑ष्ठाः॒ स्वया॑ म॒त्या म॒रुतः॒ सं मि॑मिक्षुः ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

arā ived acaramā aheva pra-pra jāyante akavā mahobhiḥ | pṛśneḥ putrā upamāso rabhiṣṭhāḥ svayā matyā marutaḥ sam mimikṣuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒राःऽइ॑व। इत्। अच॑रमाः। अहा॑ऽइव। प्रऽप्र॑। जा॒य॒न्ते॒। अक॑वाः। महः॑ऽभिः। पृश्नेः॑। पु॒त्राः। उ॒प॒ऽमासः॑। रभि॑ष्ठाः। स्वया॑। म॒त्या। म॒रुतः॑। सम्। मि॒मि॒क्षुः॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:58» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के उपदेशगुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जो (मरुतः) पवन (अराइव) चक्रों के अवयवों के सदृश (अचरमाः) नहीं अन्त्यावयव जिनके वे (अहेव) दिनों के सदृश (अकवाः) नहीं शब्द करते हुए (पृश्नेः) अन्तरिक्ष के (पुत्राः) पुत्र (महोभिः, इत्) बड़ों के ही साथ (प्रप्र, जायन्ते) अत्यन्त उत्पन्न होते और (सम्, मिमिक्षुः) अच्छे प्रकार सिञ्चन करते हैं, वैसे (उपमासः) प्रत्येक के तुल्य (रभिष्ठाः) अत्यन्त आरम्भ करनेवाले आप लोग (स्वया) अपनी (मत्या) बुद्धि से अत्यन्त उत्पन्न होओ ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे वाहन के चक्रों के अङ्ग और दिन, क्रम से वर्त्तमान हैं और जैसे पवन जा, आकर वर्षाते हैं, वैसे ही मनुष्यों को चाहिये कि क्रम से वर्त्ताव करके बुद्धि से सुख की वृष्टि सब के सुख के लिये करें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वदुपदेशगुणानाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! ये मरुतोऽराइवाऽचरमा अहेवाऽकवाः पृश्नेः पुत्रा महोभिरित् प्रप्र जायन्ते सं मिमिक्षुस्तथोपमासो रभिष्ठा यूयं स्वया मत्या प्रप्र जायध्वम् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अराइव) चक्रावयवा इव (इत्) एव (अचरमाः) नान्त्यावयवाः (अहेव) अहानीव (प्रप्र) (जायन्ते) (अकवाः) अशब्दायमानाः (महोभिः) महद्भिः (पृश्नेः) अन्तरिक्षस्य (पुत्राः) (उपमासः) (रभिष्ठाः) अतिशयेनाऽऽरब्धारः (स्वया) (मत्या) प्रज्ञया (मरुतः) वायवः (सम्) (मिमिक्षुः) सिञ्चन्ति ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा रथचक्राङ्गानि दिनानि च क्रमेण वर्त्तन्ते यथा वायवो गत्वागत्य वर्षन्ति तथैव मनुष्यैः क्रमेण वर्त्तित्वा प्रज्ञया सुखवृष्टिः सर्वेषां सुखाय कर्त्तव्या ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी वाहनांची चक्रे व दिवस क्रमपूर्वक चालतात व जसे वायू गमनागमन करून वृष्टी करवितात तसेच माणसांनी नियमपूर्वक वागून सर्वांच्या सुखासाठी बुद्धिपूर्वक सुखाची वृष्टी करावी. ॥ ५ ॥