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गोम॒दश्वा॑व॒द्रथ॑वत्सु॒वीरं॑ च॒न्द्रव॒द्राधो॑ मरुतो ददा नः। प्रश॑स्तिं नः कुणुत रुद्रियासो भक्षी॒य वोऽव॑सो॒ दैव्य॑स्य ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gomad aśvāvad rathavat suvīraṁ candravad rādho maruto dadā naḥ | praśastiṁ naḥ kṛṇuta rudriyāso bhakṣīya vo vaso daivyasya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गोऽम॑त्। अश्व॑ऽवत्। रथ॑ऽवत्। सु॒ऽवीर॑म्। च॒न्द्रऽव॑त्। राधः॑। म॒रु॒तः॒। द॒द॒। नः॒। प्रऽश॑स्तिम्। नः॒। कृ॒णु॒त॒। रु॒द्रि॒या॒सः॒। भ॒क्षी॒य। वः॒। अव॑सः। दैव्य॑स्य ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:57» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मरुद्विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रुद्रियासः) साधन करनेवालों में हुए (मरुतः) मनुष्यो ! आप लोग (नः) हम लोगों के लिये (गोमत्) बहुत गौवें विद्यमान जिसमें वा (अश्वावत्) बहुत घोड़ों से युक्त (रथवत्) व प्रशंसित वाहनों के सहित (चन्द्रवत्) वा सुवर्ण आदि से युक्त वा आनन्द आदि के देनेवाले (सुवीरम्) उत्तम वीर निमित्तक (राधः) धन को (ददा) दीजिये और (दैव्यस्य) विद्वानों से किये गये (अवसः) रक्षण आदि के सम्बन्ध में (नः) हम लोगों की (प्रशस्तिम्) प्रशंसा को (कृणुत) करिये जिससे (वः) आप लोगों के समीप से एक-एक मैं सुख का (भक्षीय) सेवन करूँ ॥७॥
भावार्थभाषाः - जब मनुष्य सत्पुरुषों का सङ्ग करें, तब इस लोक में सम्पूर्ण ऐश्वर्य और परलोक में धर्म्म के अनुष्ठान करने की याचना करें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मरुद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे रुद्रियासो मरुतो ! यूयं नो गोमदश्वावद्रथवच्चन्द्रवत्सुवीरं राधो ददा। दैव्यस्यावसो नः प्रशस्तिं कृणुत येन वः सकाशादेकैकोऽहं सुखं भक्षीय ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गोमत्) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यस्मिँस्तत् (अश्वावत्) बह्वश्वयुक्तम् (रथवत्) प्रशंसितरथसहितम् (सुवीरम्) उत्तमवीरनिमित्तम् (चन्द्रवत्) सुवर्णादियुक्तमानन्दादिप्रदं वा (राधः) धनम् (मरुतः) मनुष्याः (ददा) दत्त। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यम् (प्रशस्तिम्) प्रशंसाम् (नः) अस्माकम् (कृणुत) कुरुत (रुद्रियासः) रुद्रेषु साधनकर्त्तृषु भवाः (भक्षीय) भजेयम् (वः) युष्माकम् (अवसः) रक्षादेः (दैव्यस्य) देवैः कृतस्य ॥७॥
भावार्थभाषाः - यदा मनुष्याः सत्पुरुषाणां सङ्गं कुर्युस्तदेह समग्रैश्वर्य्यं परत्र धर्मानुष्ठानं कर्त्तुं याचन्ताम् ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा माणसे सत्पुरुषांचा संग करतात तेव्हा इहलोकात संपूर्ण ऐश्वर्य व परलोकात धर्माचे अनुष्ठान यासंबंधी याचना करावी. ॥ ७ ॥