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ऋ॒ष्टयो॑ वो मरुतो॒ अंस॑यो॒रधि॒ सह॒ ओजो॑ बा॒ह्वोर्वो॒ बलं॑ हि॒तम्। नृ॒म्णा शी॒र्षस्वायु॑धा॒ रथे॑षु वो॒ विश्वा॑ वः॒ श्रीरधि॑ त॒नूषु॑ पिपिशे ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛṣṭayo vo maruto aṁsayor adhi saha ojo bāhvor vo balaṁ hitam | nṛmṇā śīrṣasv āyudhā ratheṣu vo viśvā vaḥ śrīr adhi tanūṣu pipiśe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒ष्टयः॑। वः॒। म॒रु॒तः॒। अंस॑योः। अधि॑। सहः॑। ओजः॑। बा॒ह्वोः। वः॒। बल॑म्। हि॒तम्। नृ॒म्णा। शी॒र्षऽसु॑। आयु॑धा। रथे॑षु। वः॒। विश्वा॑। श्रीः। अधि॑। त॒नूषु॑। पि॒पि॒शे॒ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:57» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मरुद्विषय में यान चलाने के फल को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋष्टयः) ज्ञानवान् (मरुतः) मनुष्यो ! (वः) आप लोगों के (अंसयोः) भुजारूप दण्डों के मूलों में जो (सहः) सहन और (ओजः) पराक्रम तथा (बाह्वोः) बाहु सम्बन्धी (वः) आप लोगों का (बलम्) बल (हितम्) स्थित (शीर्षसु) मस्तकों (अधि) पर (नृम्णा) और मनुष्य रमते हैं जिनमें ऐसे (आयुधा) शस्त्र और अस्त्र (रथेषु) संग्रामार्थ वाहनों में वा (वः) आप लोगों के (विश्वा) सम्पूर्ण (श्रीः) धन वा शोभा (अधि, पिपिशे) अधिक आश्रय की जाती और (वः) आप लोगों के (तनूषु) शरीरों में धन वा शोभा अधिक आश्रयण की जाती, उनका आप लोग संग्रहण कीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य शरीर और आत्मा से बलिष्ठ और आयुधों की विद्या में निपुण होकर उत्तम वाहन आदि सामग्रियों से युक्त हुए पुरुषार्थ करते हैं, वे धनवान् होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मरुद्विषये यानचालनफलमाह ॥

अन्वय:

हे ऋष्टयो मरुतो ! वोंऽसयोर्यत्सह ओजो बाह्वोर्वो बलं हितं शीर्षस्वधि नृम्णाऽऽयुधा रथेषु वो विश्वा श्रीरधि पिपिशे वस्तनूषु श्रीरधि पिपिशे ता यूयं सङ्गृह्णीत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋष्टयः) ज्ञानवन्तः (वः) युष्माकम् (मरुतः) मनुष्याः (अंसयोः) भुजदण्डमूलयोः (अधि) उपरि (सहः) सहनम् (ओजः) पराक्रमः (बाह्वोः) (वः) युष्माकम् (बलम्) (हितम्) स्थितम् (नृम्णा) नरो रमन्ते येषु तानि (शीर्षसु) मस्तकेषु (आयुधा) शस्त्रास्त्राणि (रथेषु) सङ्ग्रामार्थेषु यानेषु (वः) युष्माकम् (विश्वा) सर्वाणि (वः) (श्रीः) धनं शोभा वा (अधि) (तनूषु) शरीरेषु (पिपिशे) आश्रीयते ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः शरीरात्मबलिष्ठा भूत्वाऽऽयुधविद्यायां निपुणा भूत्वोत्तमयानादिसामग्रीसहिताः पुरुषार्थयन्ते ते श्रीमन्तो जायन्ते ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे शरीर व आत्म्याने बलवान व शस्त्रास्त्र विद्येत निपुण होऊन उत्तम याने इत्यादींनी सज्ज होऊन पुरुषार्थ करतात, ती धनवान होतात. ॥ ६ ॥