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तं वः॒ शर्धं॑ रथे॒शुभं॑ त्वे॒षं प॑न॒स्युमा हु॑वे। यस्मि॒न्त्सुजा॑ता सु॒भगा॑ मही॒यते॒ सचा॑ म॒रुत्सु॑ मीळ्हु॒षी ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ vaḥ śardhaṁ ratheśubhaṁ tveṣam panasyum ā huve | yasmin sujātā subhagā mahīyate sacā marutsu mīḻhuṣī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। वः॒। शर्ध॑म्। र॒थे॒ऽशुभ॑म्। त्वे॒षम्। प॒न॒स्युम्। आ। हु॒वे॒। यस्मि॑न्। सुऽजा॑ता। सु॒ऽभगा॑। म॒ही॒यते॑। सचा॑। म॒रुत्ऽसु॑। मी॒ळ्हु॒षी ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:56» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के उपदेश विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यस्मिन्) जिस कुल में (सुजाता) उत्तम प्रकार प्रसिद्ध (सुभगा) सौभाग्य से युक्त (सचा) सम्बद्ध (मीळ्हुषी) सेचन करनेवाली (मरुत्सु) मनुष्यों में (महीयते) सत्कार की जाती और जिसको सेवन करनेवाली प्राप्त होती है (तम्) उस (पनस्युम्) अपनी स्तुति की इच्छा करते हुए को (आ, हुवे) बुलाता हूँ, उसको (वः) आप लोगों के (रथेशुभम्) रथ के द्वारा कहते हुए (त्वेषम्) प्रकाशमान (शर्धम्) बलयुक्त को पुकारता हूँ ॥९॥
भावार्थभाषाः - जिस कुल में किया ब्रह्मचर्य्य जिन्होंने ऐसे स्त्री और पुरुष वर्त्तमान हैं, उसी कुल को भाग्यशाली जानना चाहिये ॥९॥ इस सूक्त में विद्वान् तथा वायु के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छप्पनवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वदुपदेशविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यस्मिन् सुजाता सुभगा सचा मीळ्हुषी मरुत्सु महीयते यमियमाप्नोति तं पनस्युमा हुवे तं वो रथेशुभं त्वेषं शर्धमा हुवे ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (वः) युष्माकम् (शर्धम्) बलयुक्तम् (रथेशुभम्) यो रथे शुम्भते तम् (त्वेषम्) देदीप्यमानम् (पनस्युम्) आत्मनः पनः स्तवनमिच्छुम् (आ) (हुवे) (यस्मिन्) कुले (सुजाता) सम्यक् प्रसिद्धा (सुभगा) सौभाग्ययुक्ता (महीयते) सत्क्रियते (सचा) समवेता (मरुत्सु) मनुष्येषु (मीळ्हुषी) सेचनकर्त्री ॥९॥
भावार्थभाषाः - यस्मिन् कुले कृतब्रह्मचर्याः स्त्रीपुरुषा वर्त्तन्ते तदेव कुलं भाग्यशालि मन्तव्यमिति ॥९॥ अत्र विद्वद्वायुगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्पञ्चाशत्तमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या कुलात ब्रह्मचारी स्त्री-पुरुष असतात त्या कुलालाच भाग्यशाली म्हटले जाते. ॥ ९ ॥