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मृ॒ळत॑ नो मरुतो॒ मा व॑धिष्टना॒स्मभ्यं॒ शर्म॑ बहु॒लं वि य॑न्तन। अधि॑ स्तो॒त्रस्य॑ स॒ख्यस्य॑ गातन॒ शुभं॑ या॒तामनु॒ रथा॑ अवृत्सत ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mṛḻata no maruto mā vadhiṣṭanāsmabhyaṁ śarma bahulaṁ vi yantana | adhi stotrasya sakhyasya gātana śubhaṁ yātām anu rathā avṛtsata ||

पद पाठ

मृ॒ळत॑। नः॒। म॒रु॒तः॒। मा। व॒धि॒ष्ट॒न॒। अ॒स्मभ्य॑म्। शर्म॑। ब॒हु॒लम्। वि। य॒न्त॒न॒। अधि॑। स्तो॒त्रस्य॑। स॒ख्यस्य॑। गा॒त॒न॒। शुभ॑म्। या॒ताम्। अनु॑। रथाः॑। अ॒वृ॒त्स॒त॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:55» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) विद्वानो ! आप लोग (न) हम लोगों को (मृळत) सुखी करिये किन्तु (मा) मत (वधिष्टन) नष्ट करिये और (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (बहुलम्) बहुत (शर्म) सुख वा गृह (वि, यन्तन) विशेष करके दीजिये और (अधि, स्तोत्रस्य) अधिक प्रशंसित (सख्यस्य) मित्रपने के (शुभम्) सुख की (गातन) प्रशंसा करिये और जो (याताम्) प्राप्त होते हुओं के (रथाः) वाहन (अवृत्सत) वर्त्तमान हैं, उनके (अनु) अनुगामी हूजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों से प्रार्थना करके श्रेष्ठ गुणों को ग्रहण करें और सब जगह मित्रता करके सब के लिये सुख प्राप्त कराया जावे ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! यूयं नो मूळत मा वधिष्टनास्मभ्यं बहुलं शर्म वि यन्तनाधि स्तोत्रस्य सख्यस्य शुभं गातन ये यातां रथा अवृत्सत ताननु गच्छथ ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मृळत) सुखयत (नः) अस्मान् (मरुतः) विद्वांसः (मा) (वधिष्टन) (अस्मभ्यम्) (शर्म) सुखं गृहं वा (बहुलम्) (वि) (यन्तन) वियच्छत (अधि) (स्तोत्रस्य) प्रशंसितस्य (सख्यस्य) सख्युर्भावस्य (गातन) प्रशंसत (शुभम्) (याताम्) (अनु) (रथाः) (अवृत्सत) ॥९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्विद्वद्भ्यः प्रार्थयित्वा शुभा गुणा ग्राह्याः सर्वत्र मैत्रीं भावयित्वा सर्वार्थं सुखमनुगम्येत ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी विद्वानांची प्रार्थना करून शुभ गुण स्वीकारावे. सर्वांशी मैत्री करून सर्वांच्या सुखासाठी झटावे. ॥ ९ ॥