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न स जी॑यते मरुतो॒ न ह॑न्यते॒ न स्रे॑धति॒ न व्य॑थते॒ न रि॑ष्यति। नास्य॒ राय॒ उप॑ दस्यन्ति॒ नोतय॒ ऋषिं॑ वा॒ यं राजा॑नं वा॒ सुषू॑दथ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na sa jīyate maruto na hanyate na sredhati na vyathate na riṣyati | nāsya rāya upa dasyanti notaya ṛṣiṁ vā yaṁ rājānaṁ vā suṣūdatha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। सः। जी॒य॒ते॒। म॒रु॒तः॒। न। ह॒न्य॒ते॒। न। स्रे॒ध॒ति॒। व्य॒थ॒ते॒। न। रि॒ष्य॒ति॒। न। अ॒स्य॒। रायः॑। उप॑। द॒स्य॒न्ति॒। न। ऊ॒तयः॑। ऋषि॑म्। वा॒। यम्। राजा॑नम्। वा॒। सुसू॑दथ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:54» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) मनुष्यो ! (सः) वह (न) न (जीयते) जीता जाता (न) न (हन्यते) नाश किया जाता (न) न (स्रधेति) नाश होता (न) न (व्यथते) पीड़ित होता और (न) न (रिष्यति) हिंसा करता है (अस्य) इस का (न) न (रायः) धन और (न) न (ऊतयः) रक्षण आदि व्यवहार (उप, दस्यन्ति) नाश होते हैं (यम्) जिस (ऋषिम्) वेदार्थ के जाननेवाले (वा) अथवा (राजानम्) राजा को (वा) भी आप लोग (सुषूदथ) रखिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो वृद्धावस्था वा मरणावस्था रहित, सत्, चित् और आनन्दस्वरूप, नित्य गुण, कर्म्म और स्वभाववाला जगदीश्वर है, उसकी सब आप लोग उपासना करो ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! स न जीयते न हन्यते न स्रेधति न व्यथते न रिष्यति अस्य न रायो नोतय उप दस्यन्ति यमृषिं वा राजानं वा यूयं सुषूदथ ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) (सः) जगदीश्वरः (जीयते) जितो भवति (मरुतः) मनुष्याः (न) (हन्यते) (न) (स्रेधति) न क्षीयते (न) (व्यथते) पीड्यते (न) (रिष्यति) हिनस्ति (न) (अस्य) (रायः) धनम् (उप) (दस्यन्ति) क्षयन्ति (न) (ऊतयः) रक्षणाद्याः (ऋषिम्) वेदार्थविदम् (वा) (यम्) (राजानम्) (वा) (सुषूदथ) रक्षथ ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! योऽजरोऽमरः सच्चिदानन्दस्वरूपो नित्यगुणकर्मस्वभावो जगदीश्वरोऽस्ति तं सर्वे यूयमुपाध्वम् ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो वृद्धावस्था किंवा मरणावस्थारहित सत चित आनंदस्वरूप नित्य गुण कर्म स्वभावयुक्त जगदीश्वर आहे त्याची सर्वांनी उपासना करावी. ॥ ७ ॥