मा वो॑ र॒सानि॑तभा॒ कुभा॒ क्रुमु॒र्मा वः॒ सिन्धु॒र्नि री॑रमत्। मा वः॒ परि॑ ष्ठात्स॒रयुः॑ पुरी॒षिण्य॒स्मे इत्सु॒म्नम॑स्तु वः ॥९॥
mā vo rasānitabhā kubhā krumur mā vaḥ sindhur ni rīramat | mā vaḥ pari ṣṭhāt sarayuḥ purīṣiṇy asme it sumnam astu vaḥ ||
मा। वः॒। र॒सा। अनि॑तभा। कुभा॑। क्रुमुः॑। मा। वः॒। सिन्धुः॑। नि। री॒र॒म॒त्। मा। वः॒। परि॑। स्था॒त्। स॒रयुः॑। पु॒री॒षिणी॑। अ॒स्मे इति॑। इत्। सु॒म्नम्। अ॒स्तु॒। वः॒ ॥९॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर विद्वानों को क्या उपदेश देना योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्विद्वद्भिः किमुपदेष्टव्यमित्याह ॥
हे मनुष्या ! अनितभा कुभा क्रुमू रसा मा वो नि रीरमत् सिन्धुर्मा वो नि रीरमत्। सरयुः पुरीषिणी मा वः परि ष्ठाद्येनाऽस्मे वश्च सुम्नमिदस्तु ॥९॥