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आ या॑त मरुतो दि॒व आन्तरि॑क्षाद॒मादु॒त। माव॑ स्थात परा॒वतः॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā yāta maruto diva āntarikṣād amād uta | māva sthāta parāvataḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। या॒त॒। म॒रु॒तः॒। दि॒वः। आ। अ॒न्तरि॑क्षात्। अ॒मात्। उ॒त। मा। अव॑। स्था॒त॒। प॒रा॒ऽवतः॑ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या प्राप्त करना योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) मनुष्यो ! आप लोग (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष (उत) और (अमात्) गृह से (दिवः) कामनाओं को (आ) सब प्रकार से (यात) प्राप्त हूजिये और (परावतः) दूर देश से (मा) नहीं (अव, आ, स्थात) अच्छे प्रकार से स्थित हूजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - वे ही मनुष्य कामना की सिद्धि को प्राप्त होते हैं, जो विरोध का त्याग करके विद्वान् होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं प्राप्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! यूयमन्तरिक्षादुतामाद्दिव आ यात परावतो मावाऽऽस्थात ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (यात) प्राप्नुत (मरुतः) मनुष्याः (दिवः) कामनाः (आ) (अन्तरिक्षात्) (अमात्) गृहात् (उत) अपि (मा) (अव) (स्थात) तिष्ठत (परावतः) दूरदेशात् ॥८॥
भावार्थभाषाः - त एव मनुष्याः कामसिद्धिमाप्नुवन्ति ये विरोधं त्यक्त्वा विद्यावन्तो भवन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विरोध दूर सारून विद्वान होतात त्याच माणसांच्या कामना पूर्ण होतात. ॥ ८ ॥