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त॒तृ॒दा॒नाः सिन्ध॑वः॒ क्षोद॑सा॒ रजः॒ प्र स॑स्रुर्धे॒नवो॑ यथा। स्य॒न्ना अश्वा॑इ॒वाध्व॑नो वि॒मोच॑ने॒ वि यद्वर्त॑न्त ए॒न्यः॑ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tatṛdānāḥ sindhavaḥ kṣodasā rajaḥ pra sasrur dhenavo yathā | syannā aśvā ivādhvano vimocane vi yad vartanta enyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त॒तृ॒दा॒नाः। सिन्ध॑वः। क्षोद॑सा। रजः॑। प्र। स॒स्रुः। धे॒नवः॑। य॒था॒। स्य॒न्नाः। अश्वाः॑ऽइव। अध्व॑नः। वि॒ऽमोच॑ने। वि। यत्। वर्त॑न्ते। ए॒न्यः॑ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यथा) जिस प्रकार से (धेनवः) दुग्ध देनेवाली गौएँ वैसे (क्षोदसा) जल से (ततृदानाः) भूमि को तोड़नेवाली (सिन्धवः) नदियाँ (रजः) लोक को (प्र, सस्रुः) प्रस्रवित करती हैं । और (अश्वाइव) जैसे घोड़े दौड़ते हैं, वैसे (यत्) जो (स्यन्नाः) शीघ्र जानेवाली (एन्यः) नदियाँ (विमोचने) विमोचन में (अध्वनः) मार्गों को (वि, वर्त्तन्ते) बितातीं हैं, उनसे सम्पूर्ण उपकार ग्रहण करने चाहियें ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे दुग्ध देनेवाली गौवें दुग्ध की वृष्टि करती हैं, वैसे ही नदी, तड़ाग, समुद्र आदि और अन्य जलाशय पृथिवी में वृष्टि करते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं विज्ञातव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा धेनवस्तथा क्षोदसा ततृदानाः सिन्धवो रजः प्र सस्रुरश्वाइव यद्याः स्यन्ना एन्यो विमोचनेऽध्वनो वि वर्त्तन्ते ताभ्यस्सर्व उपकारा ग्राह्याः ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ततृदानाः) भूमिं हिंसन्तः (सिन्धवः) नद्यः (क्षोदसा) जलेन (रजः) लोकम् (प्र) (सस्रुः) स्रवन्ति (धेनवः) दुग्धदात्र्यो गावः (यथा) येन प्रकारेण (स्यन्नाः) आशुगमनाः (अश्वाइव) यथा तुरङ्गं धावन्ति तथा (अध्वनः) मार्गान् (विमोचने) (वि) (यत्) याः (वर्त्तन्ते) (एन्यः) या यन्ति ता नद्यः। (निघं०१.१३) ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा धेनवो दुग्धं वर्षन्ति तथैव नदीसरःसमुद्रादयो जलाशयाः पृथिव्यां वर्षन्ति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा दूध देणाऱ्या गाई दुधाची वृष्टी करतात तसेच नदी, तलाव, समुद्र इत्यादी व इतर जलाशय पृथ्वीवर वृष्टी करतात. ॥ ७ ॥