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ऐतान्रथे॑षु त॒स्थुषः॒ कः शु॑श्राव क॒था य॑युः। कस्मै॑ सस्रुः सु॒दासे॒ अन्वा॒पय॒ इळा॑भिर्वृ॒ष्टयः॑ स॒ह ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aitān ratheṣu tasthuṣaḥ kaḥ śuśrāva kathā yayuḥ | kasmai sasruḥ sudāse anv āpaya iḻābhir vṛṣṭayaḥ saha ||

पद पाठ

आ। ए॒तान्। रथे॑षु। त॒स्थुषः॑। कः। शु॒श्रा॒व॒। क॒था। य॒युः॒। कस्मै॑। स॒स्रुः॒। सु॒ऽदासे॑। अनु॑। आ॒पयः॑। इळा॑भिः। वृ॒ष्टयः॑। स॒ह ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:11» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे पूँछ के क्या जानें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (रथेषु) विमान आदि वाहनों से (एतान्) इन (तस्थुषः) स्थावर काष्ठ आदि पदार्थों को (कः) कौन (आ, शुश्राव) अच्छे प्रकार सुनाता है और (कथा) कैसे मनुष्य (ययुः) प्राप्त होते हैं और (कस्मै) किस के लिये (सस्रुः) प्राप्त होते हैं (इळाभिः) अन्न आदिकों से (वृष्टयः) वृष्टियाँ और (आपयः) प्राप्त होनेवाले पदार्थ (सह) एक साथ (सुदासे) सुन्दर दास जिसके उसमें (अनु) अनुकूल प्राप्त होते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - कोई ही मनुष्य सम्पूर्ण शिल्पविद्या के व्यवहार करने को समर्थ होता है, जो व्याप्त और बहुत उत्तम गुणवाले बिजुली आदि पदार्थों को यथावत् जानता है ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कथं पृष्ट्वा किं जानीयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! रथेष्वेताँस्तस्थुषः क आ शुश्राव कथा मनुष्या ययुः। कस्मै सस्रुरिळाभिर्वृष्टय आपयः सह सुदासेऽनुसस्रुः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (एतान्) मनुष्यान् वाय्वादीन् (रथेषु) विमानादियानेषु (तस्थुषः) स्थावरान् काष्ठादिपदार्थान् (कः) (शुश्राव) श्रावयति (कथा) केन प्रकारेण (ययुः) यान्ति (कस्मै) (सस्रुः) प्राप्नुवन्ति (सुदासे) शोभना दासा यस्य तस्मिन् (अनु) (आपयः) य आप्नुवन्ति ते (इळाभिः) अन्नादिभिः (वृष्टयः) (सह) ॥२॥
भावार्थभाषाः - कश्चिदेव मनुष्यः सर्वं शिल्पविद्याव्यवहारं कर्त्तुं शक्नोति यो व्याप्तान् बहूत्तमगुणान् विद्युदादीन् पदार्थान् यथावज्जानाति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - एखादाच माणूस संपूर्ण शिल्पविद्येचा व्यवहार जाणण्यास समर्थ होऊ शकतो. जो व्याप्त असलेल्या विद्युत इत्यादी उत्तम गुण असलेल्या पदार्थांना जाणतो. ॥ २ ॥