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स्तु॒हि भो॒जान्त्स्तु॑व॒तो अ॑स्य॒ याम॑नि॒ रण॒न्गावो॒ न यव॑से। य॒तः पूर्वाँ॑इव॒ सखीँ॒रनु॑ ह्वय गि॒रा गृ॑णीहि का॒मिनः॑ ॥१६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

stuhi bhojān stuvato asya yāmani raṇan gāvo na yavase | yataḥ pūrvām̐ iva sakhīm̐r anu hvaya girā gṛṇīhi kāminaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्तु॒हि। भो॒जान्। स्तु॒व॒तः। अ॒स्य॒। याम॑नि। रण॑न्। गावः॑। न। यव॑से। य॒तः। पूर्वा॑न्ऽइव। सखी॑न्। अनु॑। ह्व॒य॒। गि॒रा। गृ॒णी॒हि॒। का॒मिनः॑ ॥१६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:16 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:13» मन्त्र:6 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:16


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (रणन्) उपदेश देते हुए आप (स्तुवतः) प्रशंसा करनेवाले (भोजान्) पालकों की (स्तुहि) स्तुति कीजिये और (अस्य) इस रक्षण के (यामनि) मार्ग में (यतः) जिससे (पूर्वानिव) जैसे पूर्व वैसे वर्त्तमान (सखीन्) मित्रों का (गिरा) वाणी से (अनु, ह्वय) निमन्त्रण करो और मित्रों को (यवसे) बुस आदि में (गावः) गौओं के (न) सदृश निमन्त्रण करो और (कामिनः) श्रेष्ठ मनोरथ जिनका उनकी (गृणीहि) स्तुति करो ॥१६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे विद्वन् ! जो प्रशंसा करने योग्य और सब के मित्र और सत्य की कामना करनेवाले होवें, उनका सदा ही सत्कार करो ॥१६॥ इस सूक्त में प्रश्न उत्तर और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तिरपनवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! रणँस्त्वं स्तुवतो भोजान् स्तुहि। अस्य यामनि यतः पूर्वानिव सखीन् गिराऽनु ह्वय सखीन् यवसे गावो नाऽनु ह्वय कामिनो गृणीहि ॥१६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तुहि) (भोजान्) पालकान् (स्तुवतः) प्रशंसकान् (अस्य) रक्षणस्य (यामनि) मार्गे (रणन्) उपदिशन् (गावः) धेनवः (न) इव (यवसे) बुसादौ (यतः) (पूर्वानिव) यथा पूर्वांस्तथा वर्त्तमानान् (सखीन्) मित्रान् (अनु) (ह्वय) निमन्त्रय (गिरा) वाण्या (गृणीहि) (कामिनः) प्रशस्तं कामो येषामस्ति तान् ॥१६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे विद्वन् ! ये प्रशंसनीयाः सर्वेषां सुहृदः सत्यकामाः स्युस्तान् सदैव सत्कुर्य्या इति ॥१६॥ अत्र प्रश्नोत्तरविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रिपञ्चाशत्तमं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वाना! जे प्रशंसा करण्यायोग्य, सर्वांचे मित्र असून सत्याची कामना करणारे असतील त्यांचा सत्कार कर. ॥ १६ ॥