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सु॒दे॒वः स॑महासति सु॒वीरो॑ नरो मरुतः॒ स मर्त्यः॑। यं त्राय॑ध्वे॒ स्याम॒ ते ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sudevaḥ samahāsati suvīro naro marutaḥ sa martyaḥ | yaṁ trāyadhve syāma te ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽदे॒वः। स॒म॒॒ह॒। अ॒स॒ति॒। सु॒ऽवी॑रः। न॒रः॒। म॒रु॒तः॒। सः। मर्त्यः॑। यम्। त्राय॑ध्वे। स्याम॑। ते ॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:15 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:13» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (समह) सत्कार से सहित ! (सः) वह (सुदेवः) सुन्दर विद्वान् (सुवीरः) सुन्दर वीर (मर्त्यः) मनुष्य (असति) है (यम्) जिसको हे (मरुतः) मनुष्यो (नरः) अग्रणीजनो ! (ते) वे आप लोग (त्रायध्वे) रक्षा करो, हम लोग उसके साथ (स्याम) होवें ॥१५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि अति उन्नत होकर निर्बल प्राणियों की सदा ही रक्षा करें ॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे समह ! स सुदेवः सुवीरो मर्त्योऽसति यं हे मरुतो नरस्ते यूयं त्रायध्वे वयं तेन सहिताः स्याम ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुदेवः) शोभनश्चासौ विद्वान् (समह) सत्कारसहित (असति) भवति (सुवीरः) शोभनश्चासौ वीरः (नरः) नायकाः (मरुतः) मनुष्याः (सः) (मर्त्यः) (यम्) (त्रायध्वे) रक्षत (स्याम) (ते) ॥१५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरत्युन्नतैर्भूत्वा निर्बलाः प्राणिनः सदैव रक्षणीयाः ॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी अत्यंत उन्नत होऊन निर्बल प्राण्यांचे सदैव रक्षण करावे. ॥ १५ ॥