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अती॑याम नि॒दस्ति॒रः स्व॒स्तिभि॑र्हि॒त्वाव॒द्यमरा॑तीः। वृ॒ष्ट्वी शं योराप॑ उ॒स्रि भे॑ष॒जं स्याम॑ मरुतः स॒ह ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

atīyāma nidas tiraḥ svastibhir hitvāvadyam arātīḥ | vṛṣṭvī śaṁ yor āpa usri bheṣajaṁ syāma marutaḥ saha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अति॑। इ॒या॒म॒। नि॒दः। ति॒रः। स्व॒स्तिऽभिः॑। हि॒त्वा। अ॒व॒द्यम्। अरा॑तीः। वृ॒ष्ट्वी। शम्। योः। आपः॑। उ॒स्रि। भे॒ष॒जम्। स्याम॑। म॒रु॒तः॒। स॒ह ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) मनुष्यो ! जैसे हम लोग (निदः) निन्दा करनेवाले मिथ्यावादियों का (अति, इयाम) उल्लङ्घन करें अर्थात् त्याग करें और (स्वस्तिभिः) सुख आदिकों से (तिरः) तिरश्चीन कर्म्म और (अवद्यम्) निन्दित कर्म्म (अरातीः) और शत्रुओं का (हित्वा) त्याग और (शम्) सुख (वृष्ट्वी) वर्षा करके (आपः) जलों को और (योः) मिश्रित (उस्रि) गो आदि से युक्त (भेषजम्) ओषधि को सुख आदिकों के (सह) साथ प्राप्त (स्याम) होवें, वैसे आप लोगों को होना चाहिये ॥१४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि निन्दक, निन्दा और पापी तथा पाप को छोड़ शत्रुओं को जीतकर, ओषधि आदि के सेवन से शरीर रोगरहित कर, विद्या और योगाभ्यास से आत्मा की उन्नति करके निरन्तर सुख प्राप्त करें ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! यथा वयं निदोऽतीयाम स्वस्तिभिस्तिरोऽवद्यमरातीश्च हित्वा शं वृष्ट्वी आपो योरुस्रि भेषजं स्वस्तिभिस्सह प्राप्ताः स्याम तथा युष्माभिर्भवितव्यम् ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अति, इयाम) उल्लङ्घेम त्यजेम (निदः) ये निन्दन्ति तान् मिथ्यावादिनः (तिरः) तिरश्चीनं कर्म्म (स्वस्तिभिः) सुखादिभिः (हित्वा) त्यक्त्वा (अवद्यम्) निन्दितं कर्म (अरातीः) शत्रून् (वृष्ट्वी) वृष्ट्वा वर्षित्वा (शम्) सुखम् (योः) मिश्रितम् (आपः) जलानि (उस्रि) गवादियुक्तम् (भेषजम्) औषधम् (स्याम) (मरुतः) मनुष्याः (सह) ॥१४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्निन्दकान् निन्दां पापिनः पापं च त्यक्त्वा शत्रून् विजित्यौषधादिसेवनेन शरीरमरोगं विधाय विद्यायोगाभ्यासेनात्मानमुन्नीय सततं सुखमाप्तव्यम् ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी निंदकांची निंदा व पापी लोकांचे पाप यांच्यापासून दूर राहावे. शत्रूंना जिंकावे व औषधींनी शरीर निरोगी ठेवावे. विद्या व योगाभ्यासाने आत्म्याची उन्नती करून निरंतर सुख प्राप्त करावे. ॥ १४ ॥