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कस्मा॑ अ॒द्य सुजा॑ताय रा॒तह॑व्याय॒ प्र य॑युः। ए॒ना यामे॑न म॒रुतः॑ ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kasmā adya sujātāya rātahavyāya pra yayuḥ | enā yāmena marutaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कस्मै॑। अ॒द्य। सुऽजा॑ताय। रा॒तह॑व्याय। प्र। य॒युः॒। ए॒ना। यामे॑न। म॒रुतः॑ ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (मरुतः) मनुष्य (अद्य) आज (एना) इस (यामेन) विरक्त हुए से (कस्मै) किस (सुजाताय) उत्तम विद्याओं में प्रसिद्ध (रातहव्याय) दिया दातव्य जिसने उसके लिये (प्र, ययुः) प्राप्त होते हैं, वे विद्या के देनेवाले होकर प्रशंसित होते हैं ॥१२॥
भावार्थभाषाः - विद्या आदि उत्तम गुणों के दान के विना विद्वानों की प्रशंसा नहीं होती है ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

ये मरुतोऽद्यैना यामेन कस्मै सुजाताय रातहव्याय प्र ययुस्ते विद्यादातारो भूत्वा प्रशंसिता जायन्ते ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कस्मै) (अद्य) (सुजाताय) सुष्ठुविद्यासु प्रसिद्धाय (रातहव्याय) दत्तदातव्याय (प्र, ययुः) प्राप्नुवन्ति (एना) एनेन (यामेन) उपरतेन (मरुतः) मनुष्याः ॥१२॥
भावार्थभाषाः - विद्यादिशुभगुणदानेन विना विदुषां प्रशंसा नैव जायते ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्या इत्यादी उत्तम गुण दान केल्याशिवाय विद्वानांची प्रशंसा होत नाही. ॥ १२ ॥