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शर्धं॑शर्धं व एषां॒ व्रातं॑व्रातं ग॒णंग॑णं सुश॒स्तिभिः॑। अनु॑ क्रामेम धी॒तिभिः॑ ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śardhaṁ-śardhaṁ va eṣāṁ vrātaṁ-vrātaṁ gaṇaṁ-gaṇaṁ suśastibhiḥ | anu krāmema dhītibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शर्ध॑म्ऽशर्धम्। वः॒। एषा॒॒म्। व्रात॑म्ऽव्रातम्। ग॒णम्ऽग॑णम्। सु॒श॒स्तिऽभिः। अनु॑। क्रा॒मे॒म॒। धी॒तिऽभिः॑ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:13» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (धीतिभिः) जैसे अङ्गुलियों से कर्म्मों को वैसे (सुशस्तिभिः) अच्छी प्रशंसाओं से (वः) आप लोगों के और (एषाम्) इनके (शर्धशर्धम्) बल-बल और (व्रातंव्रातम्) वर्त्तमान-वर्त्तमान (गणंगणम्) समूह-समूह को (अनु, क्रामेम) उल्लङ्घन करें, वैसे आप लोगों को भी करना चाहिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य पूर्ण बल को करें तो बहुत बलिष्ठों का भी उत्क्रमण करें ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा वयं धीतिभिः कर्माणीव सुशस्तिभिर्व एषाञ्च शर्धंशर्धं व्रातंव्रातं गणंगणमनु क्रामेम तथा युष्माभिरपि कर्त्तव्यम् ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शर्धंशर्धम्) बलंबलम् (वः) युष्माकम् (एषाम्) (व्रातंव्रातम्) वर्त्तमानं वर्त्तमानम् (गणंगणम्) समूहंसमूहम् (सुशस्तिभिः) सुष्ठुप्रशंसाभिः (अनु) (क्रामेम) उल्लङ्घेम (धीतिभिः) अङ्गुलिभिः कर्माणीव ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यदि मनुष्याः पूर्णं बलं कुर्युस्तर्हि बहून् बलिष्ठानप्युत्क्रामयेयुः ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर माणसांनी पूर्ण बल प्राप्त केले तर पुष्कळ बलवानाच्या पुढे जाता येते. ॥ ११ ॥