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उ॒त स्म॒ ते परु॑ष्ण्या॒मूर्णा॑ वसत शु॒न्ध्यवः॑। उ॒त प॒व्या रथा॑ना॒मद्रिं॑ भिन्द॒न्त्योज॑सा ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta sma te paruṣṇyām ūrṇā vasata śundhyavaḥ | uta pavyā rathānām adrim bhindanty ojasā ||

पद पाठ

उ॒त। स्म॒। ते। परु॑ष्ण्या॒म्। ऊर्णाः॑। व॒स॒त॒। शु॒न्ध्यवः॑। उ॒त। प॒व्या। रथा॑नाम्। अद्रि॑म्। भि॒न्द॒न्ति॒। ओज॑सा ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (परुष्ण्याम्) पालन करनेवाली में (शुन्ध्यवः) शोधन करनेवाली (रथानाम्) वाहनों के (पव्या) रथों के चक्रों पहियों की लीकों के सदृश (ओजसा) बल से (अद्रिम्) मेघ को (भिन्दन्ति) तोड़ती हैं (उत) और वर्षाती हैं, वे (ते) तुम्हारे लिये हों (उत) और (स्म) निश्चित (ऊर्णाः) रक्षित हुए यहाँ सत्कार किये गये आप लोग (वसत) वसिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - जैसे मेघ वर्षते हुए पृथिवी को विदीर्ण करते हैं, वैसे ही श्रेष्ठ पुरुषों का सङ्ग अशुद्धि का नाश करता है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! याः परुष्ण्यां शुन्ध्यवो रथानां पव्या इवौजसाऽद्रिं भिन्दन्ति उत वर्षन्ति तास्ते स्युः। उत स्मोर्णाः सन्तोऽत्र सत्कृता यूयं वसत ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (स्म) एव (ते) (परुष्ण्याम्) पालनकर्त्र्याम् (ऊर्णाः) रक्षिताः (वसत) (शुन्ध्यवः) शोधिकाः (उत) (पव्या) रथचक्राणां रेखाः (रथानाम्) (अद्रिम्) मेघम् (भिन्दन्ति) (ओजसा) बलेन ॥९॥
भावार्थभाषाः - यथा मेघा वर्षन्तः पृथिवीं विदीर्णन्ति तथैव सत्पुरुषसङ्गोऽशुद्धिं छिनत्ति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे मेघ वृष्टी करून आपल्या पर्जन्याने पृथ्वीला विदीर्ण करतात तसा श्रेष्ठ पुरुषांचा संग अशुद्धीचा नाश करतो. ॥ ९ ॥