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शर्धो॒ मारु॑त॒मुच्छं॑स स॒त्यश॑वस॒मृभ्व॑सम्। उ॒त स्म॒ ते शु॒भे नरः॒ प्र स्य॒न्द्रा यु॑जत॒ त्मना॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śardho mārutam uc chaṁsa satyaśavasam ṛbhvasam | uta sma te śubhe naraḥ pra syandrā yujata tmanā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शर्धः॑। मारु॑तम्। उत्। शं॒स॒। स॒त्यऽश॑वसम्। ऋभ्व॑सम्। उ॒त। स्म॒। ते। शु॒भे। नरः॑। प्र। स्य॒न्द्राः। यु॒ज॒त॒। त्मना॑ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप (मारुतम्) मनुष्यों के सम्बन्धी इस (शर्धः) बल और (सत्यशवसम्) सत्य बल जिसका उस (ऋभ्वसम्) बुद्धिमान् को ग्रहण करनेवाले की (उत्, शंस) अच्छे प्रकार स्तुति करो (उत) और (स्म) निश्चित (ते) वे (स्यन्द्राः) धीरतायुक्त गमनवाले (नरः) नायक आप लोग (शुभे) उत्तम कार्य में (त्मना) आत्मा से परमात्मा को (प्र, युजत) प्रयुक्त करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि उत्तम बल और परमात्मा की निरन्तर प्रशंसा करें ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वँस्त्व मारुतं शर्धः सत्यशवसमृभ्वसमुच्छंस। उत स्म ते स्यन्द्रा नरो यूयं शुभे त्मना परमात्मानं प्र युजत ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शर्धः) बलम् (मारुतम्) मनुष्याणामिदम् (उत्) (शंस) स्तुहि (सत्यशवसम्) सत्यं शवो बलं यस्य (ऋभ्वसम्) ऋभुं मेधाविनमसते गृह्णाति तम्। ऋभुरिति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) अस गत्यादिः। (उत) (स्म) (ते) (शुभे) (नरः) नेतारो मनुष्याः (प्र) (स्यन्द्राः) धैर्य्यगतयः (युजत) (त्मना) आत्मना ॥८॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरुत्तमं बलं परमात्मा च सततं प्रशंसनीयाः ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी उत्तम बल प्राप्त करून परमेश्वराची निरंतर प्रशंसा करावी. ॥ ८ ॥