शर्धो॒ मारु॑त॒मुच्छं॑स स॒त्यश॑वस॒मृभ्व॑सम्। उ॒त स्म॒ ते शु॒भे नरः॒ प्र स्य॒न्द्रा यु॑जत॒ त्मना॑ ॥८॥
śardho mārutam uc chaṁsa satyaśavasam ṛbhvasam | uta sma te śubhe naraḥ pra syandrā yujata tmanā ||
शर्धः॑। मारु॑तम्। उत्। शं॒स॒। स॒त्यऽश॑वसम्। ऋभ्व॑सम्। उ॒त। स्म॒। ते। शु॒भे। नरः॑। प्र। स्य॒न्द्राः। यु॒ज॒त॒। त्मना॑ ॥८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥
हे विद्वँस्त्व मारुतं शर्धः सत्यशवसमृभ्वसमुच्छंस। उत स्म ते स्यन्द्रा नरो यूयं शुभे त्मना परमात्मानं प्र युजत ॥८॥