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ते स्य॒न्द्रासो॒ नोक्षणोऽति॑ ष्कन्दन्ति॒ शर्व॑रीः। म॒रुता॒मधा॒ महो॑ दि॒वि क्ष॒मा च॑ मन्महे ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te syandrāso nokṣaṇo ti ṣkandanti śarvarīḥ | marutām adhā maho divi kṣamā ca manmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। स्य॒न्द्रासः॑। न। उ॒क्षणः॑। अति॑। स्क॒न्द॒न्ति॒। शर्व॑रीः। म॒रुता॑म्। अध॑। महः॑। दि॒वि। क्ष॒मा। च॒। म॒न्म॒हे॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो (महः) बड़े (दिवि) प्रकाश और (मरुताम्) मनुष्यों के समीप में (क्षमा) (अधा, च) और इसके अनन्तर (स्यन्द्रासः) कुछ चेष्टा करते हुओं के (न) सदृश (उक्षणः) सेवन करने वा (शर्वरीः) रात्रियों को (अति, स्कन्दन्ति) अत्यन्त प्राप्त होते हैं, उनको हम लोग (मन्महे) विशेष प्रकार से जानते हैं (ते) वे सब मनुष्यों को जानने योग्य हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य दिन-रात्रि पुरुषार्थ करते हैं, वे दुःख का उल्लङ्घन करते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! ये महो दिवि मरुतां सन्निधौ क्षमाऽधा च स्यन्द्रासो नोक्षणः शर्वरीरति ष्कन्दन्ति तान्वयं मन्महे ते सर्वैर्मनुष्यैर्विज्ञातव्याः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (स्यन्द्रासः) किञ्चिच्चेष्टमानाः (न) इव (उक्षणः) सेचकान् (अति) (स्कन्दन्ति) (शर्वरीः) रात्रीः (मरुताम्) मनुष्याणाम् (अधा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (महः) महति (दिवि) प्रकाशे (क्षमा) (च) (मन्महे) विजानीमः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या अहर्निशं पुरुषार्थमनुतिष्ठन्ति ते दुःखमुल्लङ्घन्ते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे रात्रंदिवस पुरुषार्थ करतात ती दुःखातून पार पडतात. ॥ ३ ॥