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ते हि स्थि॒रस्य॒ शव॑सः॒ सखा॑यः॒ सन्ति॑ धृष्णु॒या। ते याम॒न्ना धृ॑ष॒द्विन॒स्त्मना॑ पान्ति॒ शश्व॑तः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te hi sthirasya śavasaḥ sakhāyaḥ santi dhṛṣṇuyā | te yāmann ā dhṛṣadvinas tmanā pānti śaśvataḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। हि। स्थि॒रस्य॑। शव॑सः। सखा॑यः। सन्ति॑। धृ॒ष्णु॒ऽया। ते। याम॑न्। आ। धृ॒ष॒त्ऽविनः॑। त्मना॑। पा॒न्ति॒। शश्व॑तः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (स्थिरस्य) स्थिर (शवसः) बल के (धृष्णुया) दृढ़त्वादि गुणों से युक्त (सखायः) मित्र (सन्ति) हैं (ते) वे (हि) ही (त्मना) आत्मा से (यामन्) मार्ग में (धृषद्विनः) बहुत दृढ़त्व आदि गुणों से युक्त (आ, पान्ति) अच्छे प्रकार पालन करते हैं और जो मार्ग में प्रवृत्त हैं, (ते) वे (शश्वतः) निरन्तर पथिकों की रक्षा करते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों का ही मित्रपन और रक्षण स्थिर होता है, अन्य किसी का नहीं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

ये स्थिरस्य शवसो धृष्णुया सखायस्सन्ति ते हि त्मना यामन् धृषद्विन आ पान्ति ये यामन् प्रवृत्ताः सन्ति ते शश्वतः पथिकान् रक्षन्ति ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (हि) (स्थिरस्य) (शवसः) बलस्य (सखायः) (सन्ति) (धृष्णुया) दृढत्वादिगुणयुक्ताः (ते) (यामन्) यामनि (आ) (धृषद्विनः) बहुदृढत्वादिगुणयुक्ताः (त्मना) आत्मना (पान्ति) (शश्वतः) निरन्तराः ॥२॥
भावार्थभाषाः - विदुषामेव मित्रत्वं रक्षणं स्थिरं भवति नान्यस्य ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांचीच मैत्री व रक्षण स्थिर असते इतर कुणाचे नव्हे. ॥ २ ॥