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नू म॑न्वा॒न ए॑षां दे॒वाँ अच्छा॒ न व॒क्षणा॑। दा॒ना स॑चेत सू॒रिभि॒र्याम॑श्रुतेभिर॒ञ्जिभिः॑ ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nū manvāna eṣāṁ devām̐ acchā na vakṣaṇā | dānā saceta sūribhir yāmaśrutebhir añjibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नु। म॒न्वा॒नः। ए॒षा॒म्। दे॒वान्। अच्छ॑। न। व॒क्षणा॑। दा॒ना। स॒चे॒त॒। सू॒रिऽभिः॑। याम॑ऽश्रुतेभिः। अ॒ञ्जिऽभिः॑ ॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:15 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य विद्वानों के सङ्ग से विद्याओं को प्राप्त हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (मन्वानः) मननशील पुरुष (यामश्रुतेभिः) याम प्रहर सुने गये जिनसे उन (अञ्जिभिः) विद्या और श्रेष्ठ गुणों के प्रकट करनेवाले (सूरिभिः) विद्वानों के साथ (एषाम्) इन मनुष्यों के मध्य में (देवान्) श्रेष्ठ विद्वानों वा श्रेष्ठ पदार्थों को (अच्छा) उत्तम प्रकार प्राप्त होता और (वक्षणा) प्रवाह से (दाना) दानों को करता है वह (नू) निश्चय दारिद्र्य और अज्ञान को (न) नहीं प्राप्त होता है, उसको आप लोग (सचेत) सम्बन्धित करिये ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानों के सङ्ग को प्रिय मानने और विद्या के दान में रुचि करनेवाले होवें, वे ही शीघ्र विद्या को प्राप्त होवें ॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्या विद्वत्सङ्गेन विद्याः प्राप्नुवन्त्वित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो मन्वानो यामश्रुतेभिरञ्जिभिः सूरिभिः सहैषां मध्ये देवानच्छाऽऽप्नोति वक्षणा दाना करोति स नू दारिद्र्यमज्ञानञ्च नाप्नोति तं यूयं सचेत ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नू) (मन्वानः) मननशीलः (एषाम्) मनुष्याणां मध्ये (देवान्) दिव्यान् विदुषः पदार्थान् वा (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (न) निषेधे (वक्षणा) वहनेन (दाना) दानानि (सचेत) सम्बध्नीत (सूरिभिः) विद्वद्भिः (यामश्रुतेभिः) यामाः श्रुता यैस्तैः (अञ्जिभिः) विद्याशुभगुणप्रकटकारकैः ॥१५॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्वत्सङ्गप्रिया विद्यादानरुचयः स्युस्त एव सद्यो विद्यामाप्नुयुः ॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्वानांची संगत प्रिय मानतात व विद्या दानात ज्यांना रुची असते त्यांना तात्काळ विद्या प्राप्त होते. ॥ १५ ॥