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अधा॒ नरो॒ न्यो॑ह॒तेऽधा॑ नि॒युत॑ ओहते। अधा॒ पारा॑वता॒ इति॑ चि॒त्रा रू॒पाणि॒ दर्श्या॑ ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhā naro ny ohate dhā niyuta ohate | adhā pārāvatā iti citrā rūpāṇi darśyā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अधः॑। नरः॑। नि। ओ॒ह॒ते॒। अध॑। नि॒ऽयुतः॑। ओ॒ह॒ते॒। अध॑। पारा॑वताः। इति॑। चि॒त्रा। रू॒पाणि॑। दर्श्या॑ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:10» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य क्रम से विद्यादि व्यवहार को प्राप्त होवें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (अधा) इसके अनन्तर जो (नरः) विद्याओं में अग्रणी जन विद्याओं के कार्यों को (नि) निश्चय करके (ओहते) प्राप्त होते हैं, और (अधा) इसके अनन्तर (नियुतः) निश्चित वायु आदि गमनवाला (ओहते) प्राप्त होता वा प्राप्त कराता है (अधा) इसके अनन्तर (पारावता) दूर देश में होनेवाले (दर्श्या) देखने के योग्य (चित्रा) अद्भुत (रूपाणि) रूपों के (इति) इस प्रकार से प्रत्यक्ष करता है, वह कृतकृत्य होता है ॥११॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि पहिले ब्रह्मचर्य्य से विद्याओं को प़ढ़कर उसके अनन्तर कार्य्यों के रचने में प्रवीणता को प्रत्यक्ष करके फिर अनुमान से दूर में स्थित अदृश्य पदार्थों के विज्ञान को करके आश्चर्य्ययुक्त कार्य्य करें ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याः क्रमेण विद्यादिव्यवहारं प्राप्नुयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! अधा यो नरो विद्याकार्य्याणि न्योहतेऽधा नियुत ओहतेऽधा पारावता दर्श्या चित्रा रूपाणीति साक्षात्करोति स कृतकृत्यो जायते ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अधा) अथ। अत्र सर्वत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नरः) विद्यासु नायकः (नि) निश्चयेन (ओहते) प्राप्नोति प्रापयति वा (अधा) (नियुतः) निश्चितवाय्वादिगतिमान् (ओहते) (अधा) (पारावताः) पारावति दूरदेशे भवाः (इति) अनेन प्रकारेण (चित्रा) चित्राण्यद्भुतानि (रूपाणि) (दर्श्या) द्रष्टुं योग्यानि ॥११॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः पुरस्ताद्ब्रह्मचर्येण विद्या अधीत्य तदनन्तरं कार्य्यरचनकौशलं साक्षात्कृत्य पुनरनुमानेन दूरस्थानामदृश्यानां पदार्थानां विज्ञानं कृत्वाऽश्चर्य्याणि कर्माणि कर्त्तव्यानि ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी प्रथम ब्रह्मचर्याने विद्या शिकून कार्यात निपुण व्हावे. प्रात्यक्षिक करून अनुमानाने पुन्हा दूर असलेल्या अदृश्य पदार्थांना जाणून आश्चर्यजनक कार्य करावे. ॥ ११ ॥