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स॒जूर्मि॒त्रावरु॑णाभ्यां स॒जूः सोमे॑न॒ विष्णु॑ना। आ या॑ह्यग्ने अत्रि॒वत्सु॒ते र॑ण ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sajūr mitrāvaruṇābhyāṁ sajūḥ somena viṣṇunā | ā yāhy agne atrivat sute raṇa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ऽजूः। मि॒त्रावरु॑णाभ्याम्। स॒ऽजूः। सोमे॑न। विष्णु॑ना। आ। या॒हि॒। अ॒ग्ने॒। अ॒त्रि॒ऽवत्। सु॒ते। र॒ण॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:51» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:6» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (मित्रावरुणाभ्याम्) प्राण और उदान पवनों से (सजूः) संयुक्त (सोमेन) ऐश्वर्य्य वा चन्द्र से और (विष्णुना) व्यापक आकाश से (सजूः) संयुक्त और (सुते) उत्पन्न हुए जगत् में (अत्रिवत्) व्यापक के सदृश है, उसके जानने के लिये (आ, याहि) प्राप्त हूजिये और हम लोगों के लिये सत्य का (रण) उपदेश कीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य प्राण और अपान आदि में स्थित बिजुली की विद्या को जानें तो बहुत सुख को प्राप्त होवें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने विद्वन् ! त्वं मित्रावरुणाभ्यां सजूः सोमेन विष्णुना सजूः सुतेऽत्रिवदस्ति तद्बोधनायाऽऽयाहि अस्मान् सत्यमुपदेशं रण ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सजूः) संयुक्तः (मित्रावरुणाभ्याम्) प्राणोदानाभ्याम् (सजूः) (सोमेन) ऐश्वर्य्येण चन्द्रेण वा (विष्णुना) व्यापकेनाकाशेन (आ) (याहि) (अग्ने) (अत्रिवत्) (सुते) (रण) ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यदि मनुष्याः प्राणापानादिस्थविद्युद्विद्यां विजानीयुस्तर्हि बहुसुखं लभेरन् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे प्राण व अपान इत्यादींमध्ये असलेल्या विद्युत विद्येला जाणतात ती अत्यंत सुख प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥