वांछित मन्त्र चुनें

सु॒ता इन्द्रा॑य वा॒यवे॒ सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः। नि॒म्नं न य॑न्ति॒ सिन्ध॑वो॒ऽभि प्रयः॑ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sutā indrāya vāyave somāso dadhyāśiraḥ | nimnaṁ na yanti sindhavo bhi prayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ताः। इन्द्रा॑य। वा॒यवे॑। सोमा॑सः। दधि॑ऽआशिरः। नि॒म्नम्। न। य॒न्ति॒। सिन्ध॑वः। अ॒भि। प्रयः॑ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:51» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (सिन्धवः) नदियाँ (निम्नम्) अर्थात् नीचे स्थल को (न) जैसे वैसे (दध्याशिरः) धारण करने और खाने योग्य (सुताः) उत्पन्न हुए (सोमासः) ऐश्वर्य्य से युक्त पदार्थ (वायवे) वायु के सदृश बलयुक्त (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले के लिये (प्रयः) अत्यन्त प्रिय को (अभि) सब ओर से (यन्ति) प्राप्त होते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे नदियाँ समुद्र को प्राप्त होती हैं, वैसे ही बड़ी ओषधियों के सेवन करनेवाले सुख को प्राप्त होते हैं ॥७॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! सिन्धवो निम्नं देशं न दध्याशिरः सुतास्सोमासो वायव इन्द्राय प्रयोऽभि यन्ति ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुताः) निष्पन्नाः (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (वायवे) वायुवद्बलाय (सोमासः) ऐश्वर्य्ययुक्ताः पदार्थाः (दध्याशिरः) ये धातुमशितुं योग्याः (निम्नम्) [निम्नं] देशम् (न) इव (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (सिन्धवः) नद्यः (अभि) (प्रयः) अतीव प्रियम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा नद्यः समुद्रं गच्छन्ति तथैव महौषधिसेविनः सुखं यान्ति ॥७॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा नद्या समुद्राला मिळतात. तसेच महौषधी घेणारे सुख प्राप्त करतात. ॥ ७ ॥