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वाय॒वा या॑हि वी॒तये॑ जुषा॒णो ह॒व्यदा॑तये। पिबा॑ सु॒तस्यान्ध॑सो अ॒भि प्रयः॑ ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāyav ā yāhi vītaye juṣāṇo havyadātaye | pibā sutasyāndhaso abhi prayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वायो॒ इति॑। आ। या॒हि॒। वी॒तये॑। जु॒षा॒णः। ह॒व्यऽदा॑तये। पिब॑। सु॒तस्य॑। अन्ध॑सः। अ॒भि। प्रयः॑ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:51» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:5» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को क्या भोजन करना और क्या पीना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) अत्यन्त बल से युक्त ! आप (हव्यदातये) देने योग्य वस्तु के देने के लिये और (वीतये) विज्ञान आदि की प्राप्ति के लिये (अभि, प्रयः) सब ओर से सुन्दर जल का (जुषाणः) सेवन करते हुए (आ, याहि) प्राप्त हूजिये और (सुतस्य) उत्पन्न हुए (अन्धसः) अन्न के रस का (पिबा) पान करिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! आप रोग और प्रमाद के नाश करने और बुद्धि के बढ़ानेवाले अन्न को खाइये और रस को पीजिये ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः किं भोक्तव्यं पेयं चेत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे वायो ! त्वं हव्यदातये वीतयेऽभि प्रयो जुषाण आ याहि सुतस्यान्धसः पिबा ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वायो) परमबलयुक्त (आ) (याहि) आगच्छ (वीतये) विज्ञानादिप्राप्तये (जुषाणः) सेवमानः (हव्यदातये) दातव्यदानाय (पिबा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सुतस्य) निष्पन्नस्य (अन्धसः) अन्नस्य रसान् (अभि) (प्रयः) कमनीयं जलम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वंस्त्वं रोगप्रमादनाशकं बुद्धिवर्द्धकमन्नं भुङ्क्ष्व रसं पिब ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! तुम्ही रोगनाशक व प्रमादनाशक तसेच बुद्धिवर्धक अन्न खा व रस प्या. ॥ ५ ॥