वांछित मन्त्र चुनें

अ॒यं सोम॑श्च॒मू सु॒तोऽम॑त्रे॒ परि॑ षिच्यते। प्रि॒य इन्द्रा॑य वा॒यवे॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ somaś camū suto matre pari ṣicyate | priya indrāya vāyave ||

पद पाठ

अ॒यम्। सोमः॑। च॒मू इति॑। सु॒तः। अम॑त्रे। परि॑। सि॒च्य॒ते॒। प्रि॒यः। इन्द्रा॑य। वा॒यवे॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:51» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अयम्) यह (वायवे) बलवान् (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त पुरुष के लिये (सुतः) उत्पन्न किया गया (प्रियः) सुन्दर (सोमः) ऐश्वर्य्य का योग (अमत्रे) पात्र में (परि) सब ओर से (सिच्यते) सींचा जाता है, वह (चमू) दो प्रकार की सेनाओं को सब प्रकार से वृद्धि करता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो वैद्यजन ओषधियों के सारभागों को निकाल कर रोगरहित मनुष्यों को करें तो सब ऐश्वर्य्यों से युक्त होते हैं ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यै किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽयं वायव इन्द्राय सुतः प्रियः सोमोऽमत्रे परि षिच्यते स चमू परि वर्धयति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) (सोमः) ऐश्वर्य्ययोगः (चमू) द्विविधे सेने (सुतः) निष्पन्नः (अमत्रे) पात्रे (परि) सर्वतः (सिच्यते) (प्रियः) कमनीयः (इन्द्राय) परमैश्वर्य्ययुक्ताय (वायवे) बलवते ॥४॥
भावार्थभाषाः - यदि वैद्या ओषधिसारान्निस्सार्य्याऽरोगान् मनुष्यान् कुर्युस्तर्हि सर्व ऐश्वर्य्यवन्तो जायन्ते ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे वैद्यलोक औषधींचे सार काढून माणसांना रोगरहित करतात ते सर्व ऐश्वर्यवान होतात. ॥ ४ ॥