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विप्रे॑भिर्विप्र सन्त्य प्रात॒र्याव॑भि॒रा ग॑हि। दे॒वेभिः॒ सोम॑पीतये ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viprebhir vipra santya prātaryāvabhir ā gahi | devebhiḥ somapītaye ||

पद पाठ

विप्रे॑भिः। वि॒प्र॒। स॒न्त्य॒। प्रा॒त॒र्याव॑ऽभिः। आ। ग॒हि॒। दे॒वेभिः॑। सोम॑ऽपीतये ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:51» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों के साथ विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सन्त्य) वर्त्तमान में श्रेष्ठ (विप्र) बुद्धिमान् ! आप (प्रातर्यावभिः) प्रातःकाल में जानेवाले (देवेभिः) विद्वानों के और (विप्रेभिः) बुद्धिमानों के साथ (सोमपीतये) सोमलता नामक ओषधि के रस के पान के लिये (आ, गहि) प्राप्त हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जब विद्वानों के साथ विद्वानों का सङ्ग होता है, तब ऐश्वर्य्य का प्रादुर्भाव होता है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्भिस्सह विद्वान् किङ्कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे सन्त्य विप्र ! त्वं प्रातर्यावभिर्देवेभिर्विप्रेभिस्सह सोमपीतय आ गहि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विप्रेभिः) मेधाविभिः (विप्र) मेधाविन् (सन्त्य) सन्तौ वर्त्तमानो साधो (प्रातर्यावभिः) ये प्रातर्यान्ति तैः (आ) (गहि) आगच्छ (देवेभिः) विद्वद्भिस्सह (सोमपीतये) सोमस्य पानाय ॥३॥
भावार्थभाषाः - यदा विद्वद्भिस्सह विदुषां सङ्गो जायते तदैश्वर्य्यस्य प्रादुर्भावो भवति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा विद्वानांबरोबर विद्वानांची संगती होते तेव्हा ऐश्वर्याचा प्रादुर्भाव होतो. ॥ ३ ॥