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ऋत॑धीतय॒ आ ग॑त॒ सत्य॑धर्माणो अध्व॒रम्। अ॒ग्नेः पि॑बत जि॒ह्वया॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛtadhītaya ā gata satyadharmāṇo adhvaram | agneḥ pibata jihvayā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋत॑ऽधीतयः। आ। ग॒त॒। सत्य॑ऽधर्माणः। अ॒ध्व॒रम्। अ॒ग्नेः। पि॒ब॒त॒। जि॒ह्वया॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:51» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे मनुष्यों को होना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋतधीतयः) सत्य के धारण करनेवाले (सत्यधर्म्माणः) सत्य धर्म्म जिनका ऐसा विद्वानो ! आप लोग (अध्वरम्) अहिंसारूप व्यवहार को (आ, गत) प्राप्त हूजिये और (अग्नेः) अग्नि की (जिह्वया) जिह्वा से रस को (पिबत) पीजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग सत्यधर्म्म के धारण से अत्यन्त सुख को प्राप्त हूजिये ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशैर्मनुष्यैर्भवितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे ऋतधीतयः ! सत्यधर्म्माणो विद्वांसो यूयमध्वरमा गताग्नेर्जिह्वया रसं पिबत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतधीतयः) ऋतस्य सत्यस्य धीतिर्धारणं येषान्ते (आ) (गत) आगच्छत (सत्यधर्म्माणः) सत्यो धर्म्मो येषान्ते (अध्वरम्) अहिंसामयं व्यवहारम् (अग्नेः) पावकस्य (पिबत) (जिह्वया) ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं सत्यधर्म्मस्य धारणेनातुलं सुखं प्राप्नुत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! तुम्ही सत्य धर्माचा स्वीकार करून अत्यंत सुख प्राप्त करा. ॥ २ ॥