स्व॒स्ति पन्था॒मनु॑ चरेम सूर्याचन्द्र॒मसा॑विव। पुन॒र्दद॒ताघ्न॑ता जान॒ता सं ग॑मेमहि ॥१५॥
svasti panthām anu carema sūryācandramasāv iva | punar dadatāghnatā jānatā saṁ gamemahi ||
स्व॒स्ति। पन्था॑म्। अनु॑। च॒रे॒म॒। सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑ऽइव। पुनः॑। दद॑ता। अघ्न॑ता। जा॒न॒ता। सम्। ग॒मे॒म॒हि॒ ॥१५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को विद्वानों के सङ्ग से जो धर्ममार्ग उससे चलना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यैर्विद्वत्सङ्गेन धर्ममार्गेण गन्तव्यमित्याह ॥
वयं सूर्याचन्द्रमसाविव स्वस्ति पन्थामनु चरेम पुनर्ददताघ्नता जानता सह सङ्गमेमहि ॥१५॥