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स्व॒स्ति मि॑त्रावरुणा स्व॒स्ति प॑थ्ये रेवति। स्व॒स्ति न॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॑ स्व॒स्ति नो॑ अदिते कृधि ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svasti mitrāvaruṇā svasti pathye revati | svasti na indraś cāgniś ca svasti no adite kṛdhi ||

पद पाठ

स्व॒स्ति। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। स्व॒स्ति। प॒थ्ये॒। रे॒व॒ति॒। स्व॒स्ति। नः॒। इन्द्रः॑। च॒। अ॒ग्निः। च॒। स्व॒स्ति। नः॒। अ॒दि॒ते॒। कृ॒धि॒ ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:51» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:7» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अदिते) खण्डितविद्या से रहित (रेवति) बहुत धन से युक्त ! आप (पथ्ये) मार्गयुक्त कर्म्म में जैसे (मित्रावरुणा) प्राण और उदान (नः) हम लोगों के लिये (स्वस्ति) सुख (इन्द्रः, च) और वायु (स्वस्ति) सुख को (अग्निः, च) और बिजुली (स्वस्ति) सुख (नः) हम लोगों के लिये करती है, वैसे (स्वस्ति) सुख (कृधि) करिये ॥१४॥
भावार्थभाषाः - जो सब जीवों के लिये सुख देता है, वही विद्वान् प्रशंसित होता है ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अदिते रेवति ! त्वं पथ्ये यथा मित्रावरुणा नः स्वस्ति इन्द्रश्च स्वस्ति अग्निश्च स्वस्ति नः करोति तथा स्वस्ति कृधि ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वस्ति) सुखम् (मित्रावरुणा) प्राणोदानौ (स्वस्ति) (पथ्ये) पथोनपेते कर्मणि (रेवति) बहुधनयुक्ते (स्वस्ति) (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्रः) वायुः (च) (अग्निः) विद्युत् (च) (स्वस्ति) सुखम् (नः) अस्मभ्यम् (अदिते) अखण्डितविद्य (कृधि) कुरु ॥१४॥
भावार्थभाषाः - यः सर्वेभ्यः सुखं प्रयच्छति स एव विद्वान् प्रशंसितो भवति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सर्वांना सुख देतो तोच विद्वान प्रशंसित होतो. ॥ १४ ॥