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अग्ने॑ सु॒तस्य॑ पी॒तये॒ विश्वै॒रूमे॑भि॒रा ग॑हि। दे॒वेभि॑र्ह॒व्यदा॑तये ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne sutasya pītaye viśvair ūmebhir ā gahi | devebhir havyadātaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। सु॒तस्य॑। पी॒तये॒। विश्वैः॑। ऊमे॑भिः। आ। ग॒हि॒। दे॒वेभिः॑। ह॒व्यऽदा॑तये ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:51» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पन्द्रह ऋचावाले इक्यावनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् जन विद्वानों के साथ क्या करे, यह उपदेश किया जाता है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (विश्वैः) सम्पूर्ण (ऊमेभिः) रक्षा आदि करनेवाले (देवेभिः) विद्वानों के साथ (सुतस्य) निकाले हुए ओषधिरस के (पीतये) पान करने के लिये और (हव्यदातये) देने योग्य वस्तु के देने के लिये (आ, गहि) प्राप्त हूजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् जन अत्यन्त विद्वान् के साथ सम्पूर्ण जनों को उत्तम प्रकार बोध देवें तो सब आनन्दित होवें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् विद्वद्भिस्सह किं कुर्य्यादित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे अग्ने! त्वं विश्वैरूमेभिर्देवेभिः सह सुतस्य पीतये हव्यदातय आ गहि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (सुतस्य) निष्पादितस्यौषधिरसस्य (पीतये) पानाय (विश्वैः) सर्वैः (ऊमेभिः) रक्षणादिकर्त्तृभिस्सह (आ) (गहि) आगच्छ (देवेभिः) विद्वद्भिः (हव्यदातये) दातव्यदानाय ॥१॥
भावार्थभाषाः - यदि विद्वांसः परमविदुषा सह सर्वाञ्जनान् सम्बोधयेयुस्तर्हि सर्व आनन्दिताः स्युः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी व विद्वानाच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जर विद्वानांनी अत्यंत विद्वानांबरोबर संपूर्ण लोकांना उत्तम प्रकारे शिकवण दिली तर सर्व जण आनंदी होतील. ॥ १ ॥