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ई॒ळि॒तो अ॑ग्न॒ आ व॒हेन्द्रं॑ चि॒त्रमि॒ह प्रि॒यम्। सु॒खै रथे॑भिरू॒तये॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īḻito agna ā vahendraṁ citram iha priyam | sukhai rathebhir ūtaye ||

पद पाठ

ई॒ळि॒तः। अ॒ग्ने॒। आ। व॒ह॒। इन्द्र॑म्। चि॒त्रम्। इ॒ह। प्रि॒यम्। सु॒ऽखैः। रथे॑भिः। ऊ॒तये॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:5» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) आत्मप्रकाशस्वरूप (ईळितः) प्रशंसा किये गये आप (इह) इस संसार में (सुखैः) सुखकारक (रथेभिः) वाहनों से (ऊतये) रक्षण आदि के लिये (चित्रम्) अद्भुत (प्रियम्) मनोहर (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्य को (आ, वह) सब प्रकार से प्राप्त कीजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप बड़े ऐश्वर्य्य को प्राप्त होके प्रजा के रक्षण के लिये सर्वत्र भ्रमण कीजिये ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ईळितस्त्वमिह सुखै रथेभिरूतये चित्रं प्रियमिन्द्रमा वह ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ईळितः) प्रशंसितः (अग्ने) प्रकाशात्मन् (आ) (वह) समन्तात् प्राप्नुहि (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (चित्रम्) अद्भुतम् (इह) संसारे (प्रियम्) कमनीयम् (सुखैः) सुखकारकैः (रथेभिः) यानैः (ऊतये) रक्षणाद्याय ॥३॥
भावार्थभाषाः - राजँस्त्वं महैश्वर्य्यं प्राप्य प्रजारक्षणाय सर्वत्र भ्रम ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! तू अत्यंत ऐश्वर्य प्राप्त करून प्रजेच्या रक्षणासाठी सर्वत्र भ्रमण कर. ॥ ३ ॥