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अ॒द॒त्र॒या द॑यते॒ वार्या॑णि पू॒षा भगो॒ अदि॑ति॒र्वस्त॑ उ॒स्रः। इन्द्रो॒ विष्णु॒र्वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निरहा॑नि भ॒द्रा ज॑नयन्त द॒स्माः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adatrayā dayate vāryāṇi pūṣā bhago aditir vasta usraḥ | indro viṣṇur varuṇo mitro agnir ahāni bhadrā janayanta dasmāḥ ||

पद पाठ

अ॒द॒त्र॒ऽया। द॒य॒ते॒। वार्या॑णि। पू॒षा। भगः॑। अदि॑तिः। वस्ते॑। उ॒स्रः। इन्द्रः॑। विष्णुः॑। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒ग्निः। अहा॑नि। भ॒द्रा। ज॒न॒य॒न्त॒। द॒स्माः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:49» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! विद्वान् (अदत्रया, वार्य्याणि) खाने और स्वीकार करने योग्य अन्नादिकों को (दयते) देता है और (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (भगः) सेवन करने योग्य तथा (अदितिः) माता (उस्रः) किरणों का (वस्ते) आच्छादन करती है और (इन्द्रः) सूर्य्य (विष्णुः) व्यापक बिजुली (वरुणः) उदान (मित्रः) प्राण (अग्निः) प्रसिद्ध अग्नि (दस्माः) और दुःख के नाश करनेवाले (भद्रा) कल्याणकारक (अहानि) दिनों को (जनयन्त) उत्पन्न करते हैं, उनको व्यर्थ मत व्यतीत करिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जैसे माता अनुग्रह से अन्न-पान आदि के दान से सन्तानों का पालन करती है, वैसे ही सूर्य्य आदि पदार्थ दिन और रात्रि से सब की रक्षा करते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं वेदितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! विद्वानदत्रया वार्य्याणि दयते पूषा भगोऽदितिरुस्रो वस्त इन्द्रो विष्णुर्वरुणो मित्रोऽग्निर्दस्मा भद्राऽहानि जनयन्त तानि व्यर्थानि मा नयत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अदत्रया) अत्तुं योग्यान्यन्नादीनि (दयते) ददाति (वार्य्याणि) वरितुमर्हाणि (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (भगः) भजनीयः (अदितिः) माता (वस्ते) आच्छादयति (उस्रः) किरणान्। उस्रा इति रश्मिनामसु पठितम्। (निघं०१।५) (इन्द्रः) सूर्य्यः (विष्णुः) व्यापिका विद्युत् (वरुणः उदानः (मित्रः) प्राणः (अग्निः) प्रसिद्धो वह्निः (अहानि) दिनानि (भद्रा) भद्राणि (जनयन्त) जनयन्ति (दस्मा) दुःखोपक्षयितारः ॥३॥
भावार्थभाषाः - यथा माता कृपयान्नपानादिदानेनाऽपत्यानि पालयति तथैव सूर्य्यादयोऽहोरात्रिभ्यां सर्वान् रक्षन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशी माता अन्न इत्यादींनी संतानाचे पालन करते तसेच सूर्य इत्यादी पदार्थ दिवस व रात्रीद्वारे सर्वांचे रक्षण करतात. ॥ ३ ॥