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उ॒त नो॒ विष्णु॑रु॒त वातो॑ अ॒स्रिधो॑ द्रविणो॒दा उ॒त सोमो॒ मय॑स्करत्। उ॒त ऋ॒भव॑ उ॒त रा॒ये नो॑ अ॒श्विनो॒त त्वष्टो॒त विभ्वानु॑ मंसते ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta no viṣṇur uta vāto asridho draviṇodā uta somo mayas karat | uta ṛbhava uta rāye no aśvinota tvaṣṭota vibhvānu maṁsate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। नः॒। विष्णुः॑। उ॒त। वातः॑। अ॒स्रिधः॑। द्र॒वि॒णः॒ऽदाः। उ॒त। सोमः॑। मयः॑। क॒र॒त्। उ॒त। ऋ॒भवः॑। उ॒त। रा॒ये। नः॒। अ॒श्विना॑। उ॒त। त्वष्टा॑। उ॒त। विऽभ्वा॑। अनु॑। मं॒स॒ते॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:46» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अवश्य मनुष्यों को ईश्वरादिकों का सेवन करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (नः) हम लोगों को (विष्णुः) व्यापक ईश्वर (उत) और (वातः) वायु (उत) और (अस्रिधः) नहीं हिंसा करने और (द्रविणोदाः) धन का देनेवाला (उत) और (सोमः) ऐश्वर्य्यवान् (उत) और (ऋभवः) बुद्धिमान् जन (उत) और (राये) धन के लिये (नः) हम लोगों को (उत) और (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक जन (उत) और (त्वष्टा) सूक्ष्म करनेवाला (विभ्वा) समर्थ से (अनु, मंसते) अनुमान करें, उनसे विद्वान् (मयः) सुख को (करत्) सिद्ध करे ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ईश्वर आदि पदार्थों का सेवन करते हैं, वे जानने योग्य पदार्थों के जाननेवाले होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अवश्यं मनुष्यैरीश्वरादिसेवनं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! नो विष्णुरुत वात उतास्रिधो द्रविणोदा उत सोम उतर्भव उत राये नोऽस्मानुताश्विनोत त्वष्टा विभ्वाऽनु मंसते तैर्विद्वान् मयस्करत् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (नः) अस्मान् (विष्णुः) व्यापकेश्वरः (उत) (वातः) वायुः (अस्रिधः) अहिंसकः (द्रविणोदाः) धनप्रदः (उत) (सोमः) ऐश्वर्य्यवान् (मयः) (करत्) कुर्य्यात् (उत) (ऋभवः) मेधाविनः (उत) (राये) (नः) (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (उत) (त्वष्टा) तनूकर्त्ता (उत) (विभ्वा) विभुना (अनु) (मंसते) मन्यताम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या ईश्वरादीन् पदार्थान् सेवन्ते ते विदितवेदितव्या जायन्ते ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे ईश्वराचा स्वीकार करतात ती जाणण्यायोग्य पदार्थांचे जाणकार असतात. ॥ ४ ॥