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प्र तव्य॑सो॒ नम॑उक्तिं तु॒रस्या॒हं पू॒ष्ण उ॒त वा॒योर॑दिक्षि। या राध॑सा चोदि॒तारा॑ मती॒नां या वाज॑स्य द्रविणो॒दा उ॒त त्मन् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra tavyaso namaüktiṁ turasyāham pūṣṇa uta vāyor adikṣi | yā rādhasā coditārā matīnāṁ yā vājasya draviṇodā uta tman ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। तव्य॑सः। नमः॑ऽउक्तिम्। तु॒रस्य॑। अ॒हम्। पू॒ष्णः। उ॒त। वा॒योः। अ॒दि॒क्षि॒। या। राध॑सा। चो॒दि॒तारा॑। म॒ती॒नाम्। या। वाज॑स्य। द्र॒वि॒णः॒ऽदौ। उ॒त। त्मन् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:43» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! जैसे (अहम्) मैं (तुरस्य) शीघ्र कार्य्य करनेवाले (तव्यसः) बलयुक्त (उत) और (पूष्णः) पुष्टिकारक (वायोः) वायु के (नमउक्तिम्) सत्कार वा अन्न आदि के वचन का (अदिक्षि) उपदेश करता हूँ और (उत) भी (त्मन्) आत्मा में (या) जो (राधसा) धन से (मतीनाम्) मनुष्यों के (प्र, चोदितारा) अत्यन्त प्रेरणा करनेवाले और (या) जो (वाजस्य) विज्ञान वा अन्न के (द्रविणोदौ) बल से देनेवाले वर्त्तमान हैं, उनको उपदेश देता हूँ, वैसे आप लोग भी उपदेश दीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे विद्वान् जन विद्या के उपदेश और दान से मनुष्यों को उत्तम प्रकार शिक्षित करते हैं, वैसे ही तुम लोग भी करो ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यथाऽहं तुरस्य तव्यस उत पूष्णो वायोर्न्नमउक्तिमदिक्षि उत त्मन्या राधसा मतीनां प्र चोदितारा या वाजस्य द्रविणोदौ वर्त्तेते तावदिक्षि तथा यूयमप्युपदिशत ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (तव्यसः) बलस्य (नमउक्तिम्) नमस्सत्कारस्यान्नाऽऽदेर्वा वचनम् (तुरस्य) शीघ्रकारिणः (अहम्) (पूष्णः) पुष्टिकरस्य (उत) अपि (वायोः) (अदिक्षि) उपदिशामि (या) यौ (राधसा) धनेन (चोदितारा) प्रेरकौ (मतीनाम्) मनुष्याणाम् (या) यौ (वाजस्य) विज्ञानस्याऽन्नस्य वा (द्रविणोदौ) यौ द्रविणसौ दत्तस्तौ (उत) अपि (त्मन्) आत्मनि ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा विद्वांसो विद्योपदेशदानाभ्यां मनुष्यान् सुशिक्षितान् कुर्वन्ति तथैव यूयमप्यनुतिष्ठत ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक विद्येचा उपदेश व दान यांनी माणसांना उत्तम प्रकारे शिक्षित करतात तसेच अनुष्ठान तुम्ही ही करा. ॥ ९ ॥