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प्र सु॑ष्टु॒तिः स्त॒नय॑न्तं रु॒वन्त॑मि॒ळस्पतिं॑ जरितर्नू॒नम॑श्याः। यो अ॑ब्दि॒माँ उ॑दनि॒माँ इय॑र्ति॒ प्र वि॒द्युता॒ रोद॑सी उ॒क्षमा॑णः ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra suṣṭutiḥ stanayantaṁ ruvantam iḻas patiṁ jaritar nūnam aśyāḥ | yo abdimām̐ udanimām̐ iyarti pra vidyutā rodasī ukṣamāṇaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। सु॒ऽस्तु॒तिः। स्त॒नय॑न्तम्। रु॒वन्त॑म्। इ॒ळः। पति॑म्। ज॒रि॒तः॒। नू॒नम्। अ॒श्याः॒। यः। अ॒ब्दि॒ऽमान्। उ॒द॒नि॒ऽमान्। इय॑र्ति। प्र। वि॒ऽद्यु॒ता॑। रोद॑सी॒ इति॑। उ॒क्षमा॑णः ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:42» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जरितः) स्तुति करनेवाले ! आप (यः) जो (अब्दिमान्) मेघों से युक्त और (उदनिमान्) बहुत जलवाला (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (उक्षमाणः) सींचता हुआ (विद्युता) बिजली के साथ मेघ (इयर्त्ति) प्राप्त होता है और जो (सुष्टुतिः) उत्तम प्रशंसायुक्त है उस (स्तनयन्तम्) गर्जना करते हुए को (नूनम्) निश्चय से (प्र, अश्याः) प्राप्त होओ और आप (रुवन्तम्) शब्द करते हुए (इळः) पृथिवी के (पतिम्) पालन करनेवाले की (प्र) उत्तम प्रकार जनाइये ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो मेघ भूमि में वर्त्तमान जीवों का पालन करनेवाला, बिजुली के साथ वृष्टि करता और शब्द करता हुआ भूमि को प्राप्त होता है, उसको जान के अन्यों को जनाइये ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे जरितस्त्वं योऽब्दिमानुदनिमान् रोदसी उक्षमाणो विद्युता सह मेघ इयर्त्ति यस्सुष्टुतिरस्ति तं स्तनयन्तं नूनं प्राश्यास्त्वं रुवन्तमिळस्पतिं प्र ज्ञापयेः ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) प्रकर्षेण (सुष्टुतिः) शोभना प्रशंसा (स्तनयन्तम्) गर्जनां कुर्वन्तम् (रुवन्तम्) शब्दयन्तम् (इळः) पृथिव्याः (पतिम्) पालकम् (जरितः) स्तावकः (नूनम्) निश्चयेन (अश्याः) प्राप्नुयाः (यः) (अब्दिमान्) जलदवान् (उदनिमान्) बहूदकः (इयर्त्ति) प्राप्नोति (प्र) (विद्युता) तडिता सह (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (उक्षमाणः) सिञ्चमानः ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यो मेघो भूमिस्थानां जीवानां पालकस्तथा विद्युता सह वर्षयञ्छब्दयन् भूमिं प्राप्नोति तं विदित्वाऽन्यान् विज्ञापयत ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो मेघ भूमीवरील जीवांचा पालनकर्ता, विद्युतसह वृष्टिकर्ता असून गर्जना करीत भूमीवर पडतो त्याला जाणा व इतरांनाही जाणवून द्या. ॥ १४ ॥