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स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थान्वयभाषाः - जो विद्वान् होवे वह (नः) हम लोगों को (ऊर्जव्यस्य) बहुत बल से प्राप्त (पुष्टेः) पुष्टि के योग का (सिषक्तु) सेवन करे ॥२०॥
भावार्थभाषाः - जो जगत् का उपकार करनेवाला होता है, वही सम्पूर्ण विद्याओं के सम्बन्ध करने योग्य होता है ॥२०॥ इस सूक्त में विश्वेदेवों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह इकतालीसवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
यो विद्वान् भवेत् स न ऊर्जव्यस्य पुष्टेर्योगं सिषक्तु ॥२०॥
पदार्थान्वयभाषाः - (सिषक्तु) परिचरतु (नः) अस्मान् (ऊर्जव्यस्य) बहुबलप्राप्तस्य (पुष्टेः) ॥२०॥
भावार्थभाषाः - यो जगदुपकारी भवति स एव सर्वविद्यासम्बन्धं कर्त्तुमर्हति ॥२०॥ अत्र विश्वेषां देवानां गुणवर्णन कृतमतोऽस्य सूक्तस्यार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकचत्वारिंशत्तमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो जगावर उपकार करणारा असतो तोच संपूर्ण विद्येशी संलग्न असतो. ॥ २० ॥