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प॒देप॑दे मे जरि॒मा नि धा॑यि॒ वरू॑त्री वा श॒क्रा या पा॒युभि॑श्च। सिष॑क्तु मा॒ता म॒ही र॒सा नः॒ स्मत्सू॒रिभि॑र्ऋजु॒हस्त॑ ऋजु॒वनिः॑ ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pade-pade me jarimā ni dhāyi varūtrī vā śakrā yā pāyubhiś ca | siṣaktu mātā mahī rasā naḥ smat sūribhir ṛjuhasta ṛjuvaniḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प॒देऽपदे॑। मे॒। ज॒रि॒मा। नि। धा॒यि॒। वरू॑त्री। वा॒। श॒क्रा। या। पा॒युऽभिः॑। च॒। सिस॑क्तु। मा॒ता। म॒ही। र॒सा। नः॒। स्मत्। सू॒रिऽभिः॑। ऋ॒जु॒ऽहस्ता॑। ऋ॒जु॒ऽवनिः॑ ॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:41» मन्त्र:15 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (सूरिभिः) विद्वानों और (पायुभिः) रक्षकों से (च) और (या) जो (मे) मेरे (पदेपदे) प्राप्त होने प्राप्त होने, जानने जानने वा जाने जाने योग्य पदार्थ में (वरूत्री) श्रेष्ठ सुख की देने (जरिमा) और स्तुति करानेवाली (वा) वा (शक्रा) सामर्थ्य में कारण (माता) माता (रस) रस आदि गुणों से युक्त (मही) बड़ी वाणी वा भूमि (ऋजुहस्ता) ऋजु अर्थात् सरल हस्त जिसके वा जिसमें वह (ऋजुवनिः) ऋजु अर्थात् नहीं जो कुटिल उन पदार्थों के विभक्त करनेवाली (नः) हम लोगों को (सिषक्तु) सम्बन्धित करे वह (स्मत्) ही (नि) निरन्तर (धायि) स्थित की जाती है ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे माता सन्तानों की रक्षा करती है, वैसे ही विद्वानों के संग से प्राप्त और उत्तम प्रकार शिक्षित विद्या विद्वानों की सब प्रकार रक्षा करती है ॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! सूरिभिः पायुभिश्च या मे पदेपदे वरूत्री जरिमा वा शक्रा माता रसा मही ऋजुहस्ता ऋजुवनिर्नः सिषक्तु सा स्मन्निधायि ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पदेपदे) प्राप्तव्ये प्राप्तव्ये वेदितव्ये वेदितव्ये गन्तव्ये गन्तव्ये वा पदार्थे (मे) मम (जरिमा) स्ताविका (नि) नितराम् (धायि) निधीयते (वरूत्री) वरसुखप्रदा (वा) (शक्रा) शक्तिनिमित्ता (या) (पायुभिः) रक्षणैः (च) (सिषक्तु) सम्बध्नातु (माता) जननी (महा) महती वाग्भूमिर्वा (रसा) रसादिगुणयुक्ता (नः) अस्मान् (स्मत्) एव (सूरिभिः) विद्वद्भिः (ऋजुहस्ता) ऋजू सरलौ हस्तौ यस्या यस्यां वा सा (ऋजुवनिः) ऋजूनामकुटिलानां पदार्थानां संविभाजिका ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा माताऽपत्यानि रक्षति तथैव विद्वत्सङ्गेन लब्धा सुशिक्षिता विद्या विदुषः सर्वतो रक्षति ॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जशी माता संतानाचे रक्षण करते. तसेच विद्वानांच्या संगतीने उत्तम प्रकारे प्राप्त झालेली विद्या विद्वानांचे सर्व प्रकारे रक्षण करते. ॥ १५ ॥