प॒देप॑दे मे जरि॒मा नि धा॑यि॒ वरू॑त्री वा श॒क्रा या पा॒युभि॑श्च। सिष॑क्तु मा॒ता म॒ही र॒सा नः॒ स्मत्सू॒रिभि॑र्ऋजु॒हस्त॑ ऋजु॒वनिः॑ ॥१५॥
pade-pade me jarimā ni dhāyi varūtrī vā śakrā yā pāyubhiś ca | siṣaktu mātā mahī rasā naḥ smat sūribhir ṛjuhasta ṛjuvaniḥ ||
प॒देऽपदे॑। मे॒। ज॒रि॒मा। नि। धा॒यि॒। वरू॑त्री। वा॒। श॒क्रा। या। पा॒युऽभिः॑। च॒। सिस॑क्तु। मा॒ता। म॒ही। र॒सा। नः॒। स्मत्। सू॒रिऽभिः॑। ऋ॒जु॒ऽहस्ता॑। ऋ॒जु॒ऽवनिः॑ ॥१५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! सूरिभिः पायुभिश्च या मे पदेपदे वरूत्री जरिमा वा शक्रा माता रसा मही ऋजुहस्ता ऋजुवनिर्नः सिषक्तु सा स्मन्निधायि ॥१५॥