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विश्वा॑नि नो दु॒र्गहा॑ जातवेदः॒ सिन्धुं॒ न ना॒वा दु॑रि॒ताति॑ पर्षि। अग्ने॑ अत्रि॒वन्नम॑सा गृणा॒नो॒३॒॑स्माकं॑ बोध्यवि॒ता त॒नूना॑म् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvāni no durgahā jātavedaḥ sindhuṁ na nāvā duritāti parṣi | agne atrivan namasā gṛṇāno smākam bodhy avitā tanūnām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वा॑नि। नः॒। दुः॒ऽगहा॑। जा॒त॒वे॒दः॒। सिन्धु॑म्। न। ना॒वा। दुः॒ऽइ॒ता। अति॑। प॒र्षि॒। अग्ने॑। अ॒त्रि॒ऽवत्। नम॑सा। गृ॒णा॒नः। अ॒स्माक॑म्। बो॒धि॒। अ॒वि॒ता। त॒नूना॑म् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:4» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अत्रिवत्) निरन्तर चलनेवालों से युक्त (जातवेदः) विद्याओं से सम्पन्न (अग्ने) धर्मिष्ठ राजन् ! जिससे आप (नावा) नौका से (सिन्धुम्) नदी वा समुद्र को (न) जैसे वैसे (नः) हम लोगों के (विश्वानि) समस्त (दुर्गहा) दुःख से पार जाने को योग्य और (दुरिता) दुःख से प्राप्त होने योग्यों के भी (अति, पर्षि) पार जाते हो (नमसा) सत्कार वा अन्न आदि से (गृणानः) स्तुति करते हुए (अस्माकम्) हम लोगों के (तनूनाम्) शरीरों के (अविता) रक्षक होते हुए (बोधि) जानते हो, इससे निरन्तर सेवा करने योग्य हो ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो राजा अध्यापक और उपदेशक जन सब लोगों को दुःख से पार पहुँचाते हैं, वे अतुल सुख को प्राप्त होते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हेऽत्रिवज्जातवेदोऽग्ने ! यतस्त्वं नावा सिन्धुं न नो विश्वानि दुर्गहा दुरिताति पर्षि। नमसा गृणानोऽस्माकं तनूनामविता सन् बोधि तस्मात् सततं सेवनीयोऽसि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वानि) अखिलानि (नः) अस्माकम् (दुर्गहा) दुःखेन पारं गन्तुं योग्यानि (जातवेदः) जातविद्य (सिन्धुम्) नदीं समुद्रं वा (न) इव (नावा) नौकया (दुरिता) दुःखेन प्राप्तुं योग्यानि (अति) (पर्षि) पारयसि (अग्ने) धर्मिष्ठ राजन् (अत्रिवत्) अत्रयः सततं गन्तारो विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (नमसा) सत्कारेणान्नादिना वा (गृणानः) स्तुवन् (अस्माकम्) (बोधि) बुध्यसे (अविता) रक्षकः (तनूनाम्) शरीराणाम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये राजाऽध्यापकोपदेशकाः सर्वान् जनान् दुःखात् पारयन्ति तेऽतुलं सुखं लभन्ते ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे राजा, अध्यापक, उपदेशक सर्व लोकांना दुःखाच्या पलीकडे नेतात त्यांना अतुल सुख लाभते ॥ ९ ॥